क्या गलती थी उसकी,,
यही कि वह एक नारी थी।
क्या लेना था उसे उन भेड़ियों से..
वह भी तो उनकी बहन-बेटी जैसी थी।
समझ आ रहा था उसे,
बड़ा फ़र्क होता है,बहन-बेटी होने में
और बहन-बेटी जैसा होने में।
तकलीफ में भी उस नारी ने मदद न माँगी..
क्योंकि वह जानती थी किससे क्या मदद माँगे?
जो खुद हवस के भीख मँगे हैं।
वह फिर भी जान बचा के भागी...
पर उसे उजाले का सूरज कहाँ नसीब था।
उन लोगों की हवस जो पूरी हो चुकी थी..
जाला दिया उसकी रूह और जिस्म को..
मिल गया हैवानों को सुकून।
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