शेरों-शायरी की नज्मों से सबको अपना बनाते थे।
दिलों में पाक इश्क हो यही सबको सिखलाते थे।।
क्या खाक कमबख्त़ कोरोना यूँ घर कर गया उनके।
इंदौर ही क्या पूरा मुल्क इंतकाम पर रो पड़ा उनके।।
मिलेंगे जमाने में हजारों शेरो-शायरी को पढ़ने वाले।
पर नहीं मिलेंगी मेरी रूह को राहत नगमे गड़ने वाले।।
ख्वाबों पर लिखते लिखते वह खुद ही ख्वाब बन गया।
राहत मिले उस रूह़ को जो जन्नत का सितारा हो गया।।
जन्नत खुदा के घर जश्न के माहौल का आगाज़ हो गया।
उनके जाते ही जश्न भरी इक महफिल का अंत हो गया।।
याद आप हर महफिल में शायरी की नज्मों में आओगे।
हर लफ्ज हर गजल हर शेर में राहत आप ही पाओगे।।
धन्यवाद
राधा गुप्ता पटवारी
स्वरचित व मौलिक
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.