एक पाती माँ के नाम

माँ के नाम बेटी का खत

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 01 Jun, 2020 | 1 min read

प्यारी मां,

माँ,आपके जन्मदिन पर बहुत बहुत बहुत सारी शुभकामनाएं।माँ,मैं आपको आपके जन्मदिन पर क्या तोहफा दूं,आपने तो मुझे खुद जन्मा है।आज आपके प्रति यह दिल खोलकर दे रही हूँ। माँ,तुम सच में ईश्वर की मूरत हो तो सच में बच्चे के लिए भगवान हो।यह अब समझ मेंं आया जब मैं स्वंय एक बच्चे की माँ बन गई हूँ।माँ आज मैं आपसे बहुत दूर हूँँ,अब आपकी बहुत याद आती है।माँ आप ही मेरी पहली स्कूल व गुरु हो।आप मेरी सबसे अच्छी दोस्त भी हो।मेरे पैदा होने पर आप बहुत खुश थीं।फिर मैं घुटने के बल चली पर जब मैंने चलना शुरू किया तो आपकी ही ऊँगली पकड़ी।

आप मेरी कितनी फिक्र करती थी न पर अब मैं सबकी करने लगी हूं।मांँ आप हमेशा कहती थी ना बड़ी हो जाओ तो लो माँँ मैं अब सच में बड़ी हो गई।आप हमेशा कहती थी चुप रहने की कोशिश किया कर हमेशा बकबक मत किया कर, सच में अब चुप रहना सीख गयी हूँ। आपकी दी हुई नसीहत जो शादी से पहले बहुत खराब और बेबजह लगती थी पर अब तो है सब सही लगती है।

माँ जब मैं कभी रोती थी न,तुम चुप करा देती थी।।अरे माँ वह बनारसी साड़ी याद है ना जो मैं जेबखर्च बचाकर लाई थी आपने मुझे डाँटा भी था पर आप सबसे ज्यादा उसी साड़ी को पहनती थी क्योंकि सभी उस साड़ी की तारीफ करते थे।माँ मैं जब भी कोई अच्छा काम करती थी चाहें वह कोई डिश बनाती,पेंटिंग हो या कोई हुनर,घर में सब तारीफ करते मेरी पर माँ केवल आप हँस देती,पूछने पर आप कहती अगली बार इससे अच्छा और बनाना।अब समझ आया ऐसा क्यों बोलती थी।

सच में वक्त के साथ बहुत समझदारी आ जाती है।पहले लगता था आपका हर छोटी-छोटी बात में समझाना या टोका टोकी समझ से परे थी। मैं कभी-कभी झुंझला भी जाती थी कि मम्मी हमेशा ऐसे यो कहती हैंं, यह करो, यह मत करो यहां रहो, वहां मत।अब जब मैं अपने बच्चे के साथ यही कहती हूं तो समझ में आता है कि एक माँँ की जिंदगी अपने बच्चे के इर्द-गिर्द ही घूमती है। एक मां से बेहतर कोई अपने बच्चे का भला-बुरा नहीं जान सकता।

अब मैं खुद माँ बन गयी हूँ तब अहसास हुआ माँ होना क्या होता है।माँ बच्चे की जाँँ होती है ये बिल्कुल सोलह आना सच है।मेरी सभी समस्याओं का समाधान हो आप।आपकी डाँट में भी मेरा हित ही था।जीवन में कई रिश्ते मिले पर माँ का रिश्ता सबसे अनमोल होता है।यह अब महसूस होता है।माँ तब आपकी बातें समझ नहीं आती थी पर अब उन्हें समझना नहीं पड़ा अब वह खुद समझ आने लगीं।

मां अब तक आपने हमको बहुत दुलार दिया।आपने अपनी जिम्मेदारी,अपना फर्ज अच्छे से निभाया और जब अब मेरी बारी आई तो मैं बहुत दूर विदा हो गयी। सच में आपका कर्ज कैसे उतारूँ?

माँँ,सच सब रिश्ते स्वार्थ से भरे हैं बस एक रिश्ता बिना स्वार्थ व शर्त के होता है,वह है माँ का।माँ आपने तो हमेशा दिया ही है मुझे।माँ अंत में आपको फिर जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाऐं!

आपकी परछाईं

राधा

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'

radhag764n

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