इत्तेफ़ाक़ सा था

एक प्यारी सी गज़ल

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 17 Feb, 2021 | 1 min read
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तुम से इस जिंदगी में मिलना कोई इत्तेफ़ाक़ सा था।

तुमपे जाँ निसार कर इश्क लुटाना इत्तेफ़ाक़ सा था।।


खाईं हमने बेइंतहा कसमों-रस्मों को ताउम्र के लिए।

तुम्हें हम खुदा बना बैठे जाने कैसा इत्तेफ़ाक़ सा था।।


मिलने जुलने के चलने लगे यूँ बेहिसाब से सिलसिले।

हम एक दूजे के हमराज बन बैठे ये इत्तेफ़ाक़ सा था।। 


दिल से दिल टकराए जाम यूँ छलक पड़े मयखाने से।

तुम बन बैठे मनमीत न जाने कैसा इत्तेफ़ाक़ सा था।।


दिल की हर धड़कन पे सिर्फ़ नाम तेरा बेशुमार सा।

तुमको इस जहाँ से अंजुम तक पाना इत्तेफ़ाक़ सा था।।


इबादत में इक तुमकों ही पाना मजहब सा बन बैठा।

खुद को ही तुम्हारे अक्श में उतारना इत्तेफ़ाक़ सा था।।


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धन्यवाद

राधा गुप्ता "वृन्दावनी"

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'

radhag764n

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