अनुष्का हाथ में नाईंथ का परीक्षा परिणाम लिए सड़क किनारे काफी देर से गुमसुम सी खड़ी थी। क्या करूँ ,कहाँ जाए उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।अनुष्का की उम्र कोई सोलह-सत्रह साल थी।शाम भी धीरे-धीरे घिरने लगी थी।एक तो वो स्कूल यूनिफार्म में थी और ऊपर से सुबक रही थी।अनुष्का को रोता देख राह में आते-जाते लोग भी अब उसे घूर रहे थे।
"बेटा,क्या हुआ? क्यों रो रही हो?घर नहीं जाना क्या?"एक बुज़ुर्ग दंपति ने पूछा।अनुष्का ने अनमने मन से फ़ीकी हँसी लाते अपना दर्द छुपाते हुए कहा-"बस कुछ सिर दर्द था,इसलिए यहां कुछ देर के लिए रूक गई थी।" यह कहते हुए अनुष्का ने एक ऑटो को आवाज दी और अपने घर चल दी।
रास्ते भर अनुष्का को अपनी मम्मी-पापा का गुस्से वाला चेहरा घूम रहा था।आज फिर डाँट पड़ेगी,कुछ दिन के लिए घर फिर डिस्टर्ब हो जाएगा।उसके एग्जाम रिज़ल्ट्स ना हो गया जैसे क्रिकेट टीम का रन हो गया। अनुष्का यह सोचते-सोचते बचपन की याद में खो गयी।कितना सुहाना था उसका बचपन;छोटा भाई साहिल और वह दिन भर मस्ती करते।
अनुष्का के पापा हर्षदीप सिंह पुणे में कर्नल थे और माँ डॉक्टर सुचित्रा सिंह शहर की सुप्रसिद्ध महिला डॉक्टर थी।पूरा घर उच्च शिक्षित और अनुशासन युक्त था। उसके माँ-बाप की इच्छा थी वो पढ़कर उच्च पद हासिल करे। छोटा भाई बचपन से पढ़ने में तेज़ था इसलिए उसकी कम डाँट पड़ती पर अनुष्का पढ़ाई में साधारण थी पर उसकी रुचि संगीत में थी,इसलिए उसकी आये दिन डाँट पड़ती थी।उसने कई बार अपनी इच्छा भी जाहिर भी की कि उसे संगीत की दुनिया में जाना है पर .....!!
"बहनजी-बहनजी, उतरिए! आपका स्टॉपेज आ गया।" अनुष्का की एकाएक तंद्रा टूटी और हकवका के बोली-"ओह-ओके,आ गया" और ऑटो वाले को किराया देके आगे बढ़ने लगी,तभी उसने देखा उसकी माँ भी अपनी कार से उतर रही हैं और ड्राइवर कार को पार्क कर रहा है।
माँ ने अनुष्का को देख के पूछा,"अन्नु, आज इतना लेट कैसे?स्कूल तो 3 बजे ऑफ होता है और बस भी पौने चार के करीब आती है! एवरीथिंग इस ओके?" अनुष्का ने डरते-डरते बोला-"हाँ मम्मा" और ये कह के अपने कमरे में चली गयी।
रात को पौने दस बज रहे थे।अनुष्का के पापा हर्षदीप भी घर आ गए थे।माँ सुचित्रा आज रात को अपने नर्सिंग होम नहीं गयी थी और भाई साहिल भी साइंस का असाइनमेंट आधा छोड़ नीचे चिल्लाते हुए भागा "पापा आ गए,पापा आ गए" अनुष्का को न देखते हुए हर्षदीप ने पूछा "साहिल, अन्नू दी कहाँ है?"सुचित्रा ने बात काटते हुए बोला-"अपने कमरे में है आज स्कूल से भी लेट आयी है और कविता बाई भी कह रही थी कि आज ट्यूटर वापिस लौट गई।"
हर्षदीप ने गंभीर मुद्रा में पानी पीते हुए कहा-"सुचि, कुछ दिन से अन्नू का व्यवहार बदला सा लग रहा है,गुमसुम रहती है और बात-बात में बिफर पड़ती है,तुम तो माँ हो; जानों क्या प्रॉब्लम है,उसके लिए कोई कमी नहीं छोड़ी है हमने और उसे स.........
"भाभी,सुचि भाभी-भइया जल्दी आओ,अन्नू दीदी ,अन्नू दीदी को बचाओ,,कविता हड़बड़ाते हुए बोली।किसी अनहोनी की आशंका से तीनों भागते हुए बोले क्या हुआ अन्नू को?
कमरे में दाखिल होते हुए सुचि ने देखा अनुष्का अभी भी स्कूल यूनिफॉर्म में थी और रोते-रोते अटकते शब्दों से बोल रही थी,"मम्मा पापा मुझझे माफ़ कर दो,मैं मैं कुछ नहीं कर सकती,आई एम फेलियर, मैं अब जीना नहीं चाहती|"
उसका पूरा कमरा उसके पुरस्कारों से भरा हुआ था,आज ज़मीन पर यहाँ-वहाँ पड़े हुए थे ,एक तरफ बेड पर उसका 9का रिपोर्ट कार्ड और सुसाइड नोट पड़ा था। साहिल ने रिपार्ट कार्ड उठाकर बोला- "पापा,दीदू के तो मैथ्स में री आया है।"
सुसाइड नोट पढ़कर सूची ने भागकर बेटी को गले लगा लिया।हर्ष भी रोते हुए बोला-बेटू! तुम ऐसा करने से पहले से हमारे बारे में एक बार सोचती। मेरा बड़ा बेटू है।गलती तुम्हारी नहीं हमारी है।हम तुम्हारी क्षमता को नहीं समझ पाए ।तुम्हारा रुझान पढ़ाई से ज्यादा संगीत में है और उसमें तुम अपना बेस्ट भी किया, हमारा नाम भी इस शहर में रोशन किया,,,पर हमें तो सिर्फ पढ़ाई,,और कोई हाई पोस्ट,,, यह कहकर हर्ष की आवाज रुँध गई।
सुचि और हर्ष को सब समझ आ रहा था। उन्हें अपनी गलती का अहसास भी हो रहा था कि बच्चों के बाल मन में जबरदस्ती कोई भी इच्छा नहीं थोपनी चाहिए। उन्हें अपने हिसाब से बढ़ना चाहिए। हर बच्चे का व्यक्तित्व,क्षमता व व्यवहार एक दूसरे से अलग होता है।
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राधा गुप्ता पटवारी
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