अन्तर्मन

बृजभाषा में लिखी कविता

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 11 May, 2020 | 1 min read

तुम जब लों मौरे चित सों जुड़े,

मानों स्वप्न सारे मौरे अब पूरे भये।

जा ढलती भई संझा संदेशो तेरो लाई है,

तुम एक दिना सारो जग छोड़ मोरी है जाएगी।

मानोंं अबही काबिल नाय हूँ तेरे प्यार कौ,

पर वादो है मैं तोरे सारे स्वप्नने पूरो करूँगो।

मैं नाय तो कवि हैं,नाय कोई कलाकार,

बस इक इत्तो सो मानव हों।

नाए आबे कैसोंं रिझाऊँ-मनाए तोए,

बस इक चित्त है जो केवल तेरो ही दास हैः

(ऊपर बृजभाषा में लिखा है।नीचे इन्हीं को शुद्ध हिन्दी मेंं लिखा है,,जिससे आपको समझने में दिक्कत न हो)

तुम जब से मेरे अंतर्मन से जुड़े,
मानों ख्वाब सब मेरे अब पूरे हुए।
ये ढलती हुई शाम संदेश तुम्हारा लाई है।
तुम एक दिन सब जग छोड़ मेरी होओगी।
माना अभी काबिल नहीं हूँ तेरे प्यार के,
पर वादा है हम तेरे सब सपने सपने पूरे करूंगा।
मैं न कोई कवि हूँ न कोई कलाकार,
बस एक अदना सा इंसान हूँ।
नहीं आता कैसे मनाऊँ-रिझाऊँ तुझे,
बस एक मन है जो सिर्फ तेरा ही गुलाम है।

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