खेतों या सुपरमार्केट!

खेतों पर किसानों का अधिकार है और उसके उत्पान पर भी निजी हस्तक्षेप कितना जायज है?

Originally published in hi
Reactions 0
493
Rachana Rajpurohit
Rachana Rajpurohit 11 Dec, 2020 | 0 mins read
Faramars


क्षा 3 में बच्चों को अनाज के नाम सिखाते वक़्त मैने पूछा" बताओ बच्चों रोटी किससे बनती है"

बच्चों ने लगभग एक साथ तेज आवाज़ में कहा "आटे से"

"वेरी गुड"

"और हमें आटा कैसे मिलता है" ,मैंने ब्लैकबोर्ड पर गेहूं लिखा ही था,कि

सारे बच्चे उसी तरह ज़ोर से एक साथ बोल पड़े "सुपरमार्केट से"

एकाएक मेरा हाथ थम गया ऐसा लगा जैसे किसी ने झन्नाटेदार तमाचा मारा हो

वो बच्चे थे,शहरी बच्चे उन्होंने बस सुपरमार्केट देखे थे,उनको खेतों के पता नहीं था, ये उनकी ग़लती नहीं थी।

मैं सोच में डूब गई आज सुबह ही स्टॉफ रूम में कृषि बिल पर पक्ष विपक्ष की चर्चा सुन रही थी, कुछ ही अधिक बुद्धिमान थे जो तर्क वितर्क कर रहे थे लेकिन मैं बस यही सोच रही थी,

कृषि क्षेत्र में निजी कम्पनियों के हस्तक्षेप कहीं पूरे खेतों को सुपरमार्केट न बना दे ,जहां निजी कम्पनियां किसानों से कम दामों पर खरीद कर मनमाने ढंग से रिटेलिंग करेंगी और जहाँ अन्न ही एक मात्र ऐसा उत्पाद है जो बिना प्रोसेस के आम व्यक्ति और किसान क्रय विक्रय कर सकते हैं,

इतनी सहज प्रक्रिया को जटिल बनाया जा रहा, मुझे आज किसानों का भय अपने भीतर महसूस हो रहा था, कि कहीं देश का किसान अन्नदाता न रह कर केवल श्रमिक न बन जाये औऱ खेत सुपरमार्केट!











0 likes

Published By

Rachana Rajpurohit

rachanarajpurohit

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.