विचारों का जगत यह सबके अपने विचार।
इसी से चली दुनियां फिर चलती बातें चार।।
विचार ना सबके एक से होत ना सबकी बात।
कही मिलती सहमती कहीं विरोध की रात।।
पर प्रकृति है सबकी कभी ना करती घात।
करती सबका ख्याल यह ना करती पक्षपात।।
प्रकृति से ही जन्में हैं यहां हम सभी लोग।
प्रकृति ही मरण है हमारा प्रकृति ही योग।।
सताते बेइंतहा किसी को करता पलटवार।
प्रकृति भी है ऐसा ही एक घातक हथियार।।
क्या नहीं दिया हमें? दिया है उसने बेसुमार।
जीने के पुनीत साधनों की, की है भरमार।।
कोरोना प्रकट हुआ, भयंकर एक अभिशाप।
खुद की बड़ी भूल से,डरा मानव अपने-आप।।
चीन के वुहान से,कोरोना वायरस खतरनाक।
बनकर इसने जल्दी फिर जमाई अपनी धाक।।
अस्त पस्त कर दिए सब,गिरे औंधे मुंह जाए।
जनवरी महीना में यह भारत में घुस गयो आए।।
जिन्हें खतरा हुआ विदेश में,बुलाए अपने पास।
भारत की याद आ गई,है उन्हें जन्मभूमि खास।।
लाए वो करोना बाहर से, फिर मच गया आतंक।
हुए परेशान लोग सभी,लग गया करोना डंक।।
महामारी के सामने खड़े, थे भारत के वीर।
डटकर मुकाबला किया जो थे रणधीर।।
डॉक्टर नर्स सफाई कर्मी, पुलिस कर्मी खास।
ये सभी योद्धा महान हैं, देश को बहुत आस।।
घर परिवार छोड़ सब, चले जंग में सुहानी चाल।
देश पहले था उनको,सही करें देश का हाल।।
अस्पताल में डटे रहे डॉक्टर और नर्स महान।
सफाई कर्मियों ने भी की मेहनत बड़ी बलवान।।
बीमार मरीजों की कर रहे सफल देखभाल।
सफ़ाई का भी रखा गया विशेष विशेष ख्याल।।
खुद खतरे के ढेर पर न लड़खड़ाए उनके पांव।
बचाने मानवता को लगा दिया खुद को दांव।।
बाहर सड़कों पर खड़े पुलिस के जवान तैनात।
रोकने बीमारी को, कर रहे थे वो दो दो हाथ।।
समझा बुझाकर लोगों को भेज रहे घर-द्वार।
जो बे बजह निकल रहे फिर डंडे चलाए चार।।
ना दिन की तपन देखी ना देखी अंधेरी रात।
लबालब था आत्मविश्वास पक्की थी बात।।
लड़ने इस महामारी से बैठा घर में सारा देश।
इन वीरों के मन में तनिक भी नहीं रहा द्वेष।।
देख मजबूर हालात को कभी डाले हथियार।
हर तरह की मुसीबत में जंग को थे तैयार।।
संकटकाल में जूझ रहे फिर भी न मानी हार।
खड़े चारो महान स्तंभ ले समाज का भार।।
न सोचा कभी भी करेंगे हम भी अब आराम।
निभा रहे अपना फर्ज लगे रहे सुबह से शाम।।
लड़ाई यह लंबी रही लगे रहे वो योद्धा रोज।
संपूर्ण मानवता का उनके कंधों पर है बोझ।।
मनोबल न टूटे उनका न हो जाएं वो कमजोर।
मुसीबत की इस घड़ी में अब रूठ न जाए भोर।।
हौसला बढ़ाने वीरों का कही मोदीजी ने बात।
तालियों से सम्मान करो जवानों का एक साथ।।
मन में उनके हिम्मत बढ़े , बढ़े उनका विश्वास।
वीर वो कमजोर न हों, समाज को उनसे आस।।
संकटकाल में लड़ रहे हैं ये भी सच्चे पहरेदार।
सभी के मन में इनका आदर हो करो यह सुधार।।
करते करते काम पी ली सारी अपनी पराई पीर।
मेरा उनको सादर प्रणाम है जो हैं कोरोना वीर।।
~ प्रेम शंकर "नूरपुरिया"
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित अप्रसारित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
वाकई में बेहद खूबसूरत रचना। आपकी कलम को नमन। पेपरविफ परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है।सादर नमस्कार
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