यह आलगावो का दौर है शायद,कुछ अपने आप से तो कुछ गेरो से झूठ कहे जाते हैं।
यह सवालों का दौर है ,आया तो तूफान लेकर पर जायगा ना इतनी आसानी से। ब्यथा सिर्फ इतनी ही होती तो क्या बात थी,वो तो मेरे अपने ही थे जिन्होंने मुझे जीने न दिया।नाम भी मेरे अपनो का था ,काम भी उनका ही था,मकान भी उनका था ,उनके लिए की मेरी दुआओं का असर भी उनका ही था।मुझे तो बस अपना कुछ मिला ही नही,फिर भी सबकुछ कहती में अपना ही थी।क्या यह सपना था या हक़ीक़त या फसाना था।अपनो की महफ़िल थी,फिर मुश्किल से ही कोई अपना था।दोस्ती तो बचपन में थी,साथ भी न अपना था।जमाने के लिए तो साथ थे ,फिर क्यों मेंरा वजूद भी बेगाना था।सोचती हूँ क्या वाकई यह दोष् भी मेरा ही था।
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