राम-राम मालकिन,
राम-राम छमिया , कल कहां मर गई थी , तुझे पता है ना जिस दिन तुम नहीं आती मुझे कितनी मुश्किल होती है,
घर का सारा काम, बच्चे भी कालिज से आते ही फरमाइशें शुरू कर देते हैं कभी ये बना दो, तो कभी वो
इन बच्चों के तो नखरे ही नहीं खत्म होते ।
उस पर से तेरे साहब भी बिमारी को पकड़ कर बैठ गए , 10 दिन हो बुखार ठीक ही नहीं होरहा , परेशान हो गई मैं तो तामीरदारी से , कहीं आना जाना भी मुहाल हो गया मेरा ।
ना तो मैं किट्टी पे जा सकी ,ना कोई आउटिंग हुई ।
पता नहीं कब ठीक होंगे और कब मूझे इस तीमारदारी से छुटकारा मिलेगा ।
चल जल्दी से मूझे एक कप चाय बना दे , अरे हां तुने बताया नहीं कल क्यों नहीं आई ।
मलकिन कल मेरे मर्द को हरारत लग रही थी उन्हीं के पास रूक गई , दवा -दारू ला के दिया , तुलसी -अदरक की चाय दो बार पिला दी , और हल्की सी खिचड़ी बना दी ,वरना तो खाना बना के रख आती हूं फिर ठंडी रोटी खाते तो और बीमार ही होते ।
एक दिन घर पे रह के ख्याल रखा तो अच्छे से तबीयत संभल गई ।
उस शराबी के लिए तुने छुट्टी की , तुझे पता है ना तेरे पैसे कटेंगे ।
काट लेना मलकिन , आदमी से पैसा है , पैसे से आदमी नहीं , दु:ख-सुख में यही काम आते हैं ।
छमिया के मुंह से ये सुनकर मुझे एहसास हुआ कि जब मुझे सरदर्द होता है तो रातों को जाग कर मेरा सर दबाते हैं , आज मैं उनकी बिमारी पर परेशान हो गई ,अपने आप को छमिया से छोटा महसूस कर रही थी ।
बहुत बोनी हो गई मैं आज उस के सामने उसने मुझे परिवार का एहसास दिला दिया ।
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