एक फौजी की जिंदगी -----
क्या है एक फौजी की जिंदगी , ना दो पल का चैन ना सुकून ।
कभी वो भी तो चाहता है कि मां की गोद में सर रख कर दो पल चैन से रहे , कभी वो दुल्हा बना आने वाले अपने भविष्य के सुन्दर सपने संजो रहा होता है , कभी वो बहन के साथ बचपन के किस्से दोहरा रहा होता है , कभी दोस्तों संग हंसी ठिठोली कर रहा होता है तो अचानक उसे सरहद से बुलाया जाता है तो झट सब छोड़ कर चले देता है अपना कर्तव्य निभाने ।
केवल एक फौजी ही नहीं देश के लिए कुर्बानी देता , उसका परिवार भी कुर्बानी देता है अपने सपनों की , अरमानों की कुर्बानी
**एक फौजी की जब शादी हुई , उसकी दुल्हन के हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी और फौजी का सरहद से बुलावा आ गया । और वो चला जाता है , जंग में उसका कुछ पता नहीं होता कि कहां है या नहीं भी , उसकी नई - नवेली दुल्हन उसे याद कर रही है और उसे ख़त लिख रही हैं ।**
दहलीज़ पर बैठी प्रेम - पाती लिख रही एक नारी नई नवेली .......
वो तेरा चेहरा मुझे आज भी याद है जब मिले थे हम पहली बार ।वो तेरी बातें मेरे कानों में रस घोल जाती हैं ।वो तेरा ज़िक्र मुझे आज भी झनझना जाता है तेरी तस्वीर कुछ कहती है मुझसे ।
वो गीत जो तुम मुझे देखकर गुनगुनाया करते थे ( चांद आहें भरेगा , फूल दिल थाम लेंगे हुस्न की बात चली तो सब तेरा नाम लेंगे ) आज भी हर पल मेरे कानों में गुंजता है । मैं जब भी तन्हाई में होती हूं , तेरी परछाई रहती है संग मेरे । जब भी गुजरती हूं उन गलियों से अब भी वहीं पर मेरी एक झलक पाने को खड़े इन्तज़ार में नज़र आते हो । जब भी खोलती हूं किताब पूरानी उसमें रखे हुए सुखे गुलाब के फूल तुम्हारी एक झलक दिखा जाते हैं ।
वो तिरछी निगाहों से तुम्हारा मुझे देखकर औरों संग बतियाना , वो जाते हुए सरहद पे मुझे मुड़-मुड़कर देखना तुम्हारा । अचानक तुम कहां खो गए हो , क्यों तुम इतने पराए हो गए हो । इतने निष्ठुर कैसे हो गए तुम । तुम्हारी यादों की इस उधेड़बुन में लगी हूं , दहलीज पर बैठी तुम्हारा इन्तज़ार करती हूं ।
जानती हूं तुम मां की रक्षा के लिए गए हो , मैं तुम्हें नहीं रोक सकती पर कुछ मेरा भी उधार है तुम पर , मेरे दिन, मेरी रातें कर्ज़ हैं तुम पर , तुम्हें आना होगा , मुझे दिया वो वचन निभाना होगा ।
मां की आन-बान-शान को बरकरार रखना , तुम अपना ख़्याल रखना ।
कभी याद जो आए मेरी तो इस माटी को चूम लेना , मैं भी इसी माटी से हूं जिससे तुम हो ।
फक्र है मुझे कि मैं तुम्हारी संगिनी हूं , फक्र है तुम मेरे हमसाया हो ।
अन्त में वो लिख रही है ...........
**ग़र तुम ना आए तो मुझको रंज नहीं , मां का क़र्ज़ चुकाना है तुमको इससे बढ़कर कोई फर्ज़ नहीं ।
मां की लाज बचाना तुम मैं अपनी लाज बचा लुंगी , ग़र तुम ना आए साजन , तुम्हारी यादों को मैं पालुंगी ।
इन यादों के सहारे साजन मैं अपना जीवन संवारूगीं , फिर भी मैं सदा तेरी राह निहारूंगी .......... मैं तेरी राह निहारूंगी ।**
प्रेम बजाज
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