भंवरे सा शौंक की आदत नहीं है हमें
हम तो लज़्ज़ते -इश्क का शौक़ रखते हैं ।
कटी है ज़िन्दगी इन्तज़ार में उनके फिर
भी रंज नहीं उनकी बेरूखियत का
दिल ही दिल में जलते रहे हम
लब से उफ़ तक ना निकाली ।
वो बेवफ़ा ऐसे निकले कि हमारे ही मकान
पर कब्र बनाने का उन्होंने एलान कर दिया ।
निकले थे हम उनकी महफ़िल से अश्कों
से भरी निगाह लेकर ,एक बार भी उन्होंने
आवाज़ ना लगाई हम देखते रहे
फिर भी मुड़ - मुड़कर ।
किया फिर भी इन्तज़ार चांदनी रातों
में , एक आस थी कि वो आएंगे
कब्र पे मेरी फूल लेकर ।
ना ही वो आए ना उनका पैग़ाम आया
एक आखिरी गुज़ारिश है उनसे
अगर मिल जाएं हम किसी मोड़ पर
तो देख कर यूं नज़रें मत चुराना ।
बस देखा है कहीं तुम्हें इतना कह
के गले लगाना, जी उठेंगे हम
तेरे अधुरे इश्क में भी पूरा जी लेंगे हम ।
प्रेम बजाज
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