स्वावलम्बी

स्वावलम्बी बने

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 11 Oct, 2020 | 1 min read



आज सीता आफिस जाते हुए कल की बातें याद करके बहुत खुश है ।

कल उसके आफिस की छुट्टी थी , तो ससुराल से अनुमति लेकर , मां और छोटी बहन को मिलने गई तो वहां का दृश्य देख कर हैरान रह गई ।

अरे सीता दी बहुत दिनों बाद आई इस बार ‌।

हां गीता आफिस और घर में समय नहीं रहता , मां और तुम्हारी चिंता हर पल रहती है , जब तक पापा थे तो कोई चिंता नहीं थी ।

दीदी अब हमारी चिंता ना करें , मैंने पार्ट टाइम जाॅब कर ली है और मां को भी क्मप्यूटर सिखा दिया है ,

ताकि मां का आचार, पापाड़ इत्यादि का काम आनलाइन शुरू करा दूं ।

आप अपनी व्यवस्ता के कारण नहीं आ सकती , कल को जब मेरी भी शादी हो जाएगी तो हम दोनों अपने परिवार में व्यस्त होंगे मां का कौन सहारा होगा ।

 मां को किसी के सामने हाथ ना फैलाना पड़े इसलिए हमें मां को परावलम्बी नहीं स्वावलम्बी बनाना है ।

वाह मेरी बहन ये तुमने बहुत अच्छा किया , तुम दोनों ही स्वावलम्बी हो गए, अब तो मैं तुम दोनों की तरफ चिंतामुक्त हो गई ।

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Prem Bajaj

prembajaj1

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • indu inshail · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत सही समझाया आपने

  • Prem Bajaj · 4 years ago last edited 4 years ago

    जी शुक्रिया

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