अच्छाई की बुराई पर जीत

अच्छाई की बुराई पर जीत

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 09 Nov, 2020 | 1 min read

जलाकर रावण के पुतले को देखो कहते अच्छाई की हो गई जीत बुराई पर ,

क्या सचमुच बुराई हार गई , क्या सच की झूठ पर जीत हुई ?

हंस रहा रावण भी ये देख , एक रावण ही दूजे रावण को जला रहा ,

 ना कोई राम नज़र आता , ना लक्ष्मण नज़र आ रहा ।

सहर्ष स्वीकार कर लिया बनवास पिता का वचन निभाने को ,

ऐसा भाई आज कहां मिलेगा , चला जो संग भाई की सेवा को ।

सीता सी भार्या भी आज कहीं खो गई ।

चल पड़ी थी जंगल में पति के नक्शे कदम पर जो ।

वचन निभाने वाला दशरथ भी शायद हो गया ।

किया बदनाम कैकयी को जिसने मारने रावण को ये प्रपंच रचा ,

आज की कैकयी मगर सचमुच स्वार्थी हो गई ।

उस रावण ने किया सीता का हरण था , मालूम था उसको इसमें ही उसका मरण था ,

फिर भी उसने कुदृष्टि ना उस पर डाली थी , 

रावण की सेना भी उसके अस्तित्व की करती रखवाली थी ।

आज का रावण देखो , लूटता मासूमों का अस्तित्व है ,

 ना देखता बहु- बेटी ना देखता कली अनखिली मासूम है ।

कौन जलाएगा इस रावण को , जो पुतले हर साल विद्वान रावण के जला रहा ।

ना जाने क्या होगा इस सृष्टि का , कहां ये संसार जा रहा ।

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Prem Bajaj

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