* सुलग रहा है मेरे ज़र्रे- ज़र्रे में , ये वधु से नगर-वधु का सफ़र, दास्ताँ तेरे दर्द की अब मैं जन पाई हूँ ए तवायफ़ ।*
* Prostitute, वेश्या, रख़ैल, तवायफ़ या दूसरी औरत *........कितने बदनाम नाम है ये ...कितनी घृणा की नज़र से देखा जाता है इन्हें , वेश्या भी इज़्ज़त की हकदार है ।लेकिन एक * औरत * ममता की मूरत , त्याग की छवि, साक्षात जिसे लक्ष्मी का रूप माना जाता है , वो वेश्या क्यों बनती है ? कौन बनाता है उसे वेश्या ? क्या कभी सोचा है किसी ने । वेश्या बनने के लिए एक औरत को तन से पहले अपना ज़मीर बेचना पड़ता है , कभी कोई औरत पेट की भूख से तड़फ़ कर, कभी कोई परिवार को पालने के लिए तो कभी किसी को कोई रईसजादा ही बना देता है वेश्या ।
ज़मीर तो हम सब भी बेचते है अपना , कोई नेतागिरी में कोई व्यापार मे छलकपट कर के, और कोई इसकी टोपी उसके सर और उसकी टोपी इसके सर पहना कर दिया अपना मतलब निकालते है । हम अगर दौलत कमाने के लिए एक अपना ज़मीर बेचते है तो वो ज़ायज़ होता है, एक औरत को गर मजबूरी मे भी अपना ज़मीर बेचती है तो वो नाज़ायज़ क्यों ????
ये प्रथा तो सदियों से चली आ रही है रजवाड़ों के समय मे नर्तकियाँ हुआ करती थी , रूपजीवा, गणिका, वारवधु, लोकांगना, आदी नामों से रामायण, महाभारत और आदि काल मे भी इनका उल्लेख मिलता है । कोटिल्य अर्थशास्त्र में इन्हें राजतन्त्र का अँग माना है । कथाओं मे रूपसी कामनियाँ सदैव भारत में सम्मानित रहीं हैं । अर्थात समाज का कोई भी इतिहास इनसे विहिन नहीं था ।युग के प्रारम्भ में धर्म से सम्बन्ध थी और चौंसठ कलाओं से निपुण मानी जाती थी । कालान्तर में सँगीतकला एँव नृत्यकला , एँव सीमित यौन सम्बन्धों द्वारा जिविकोपार्जन मे अस्मर्थ होकर इन्हे अश्लीलता के स्तर पर उतरना पड़ा । भारत मे दैह व्यापार अनैतिक कानून के तहत आते है लेकिन बग़ैर कानूनी मानयता के पूरे देश मे यह व्यापार धड़ल्ले से चल रहा है । क्या कभी किसी ने सोचा है ये व्यापार चलाने वाले भी तो नामी -गिरामी ऊँचे खानदान वाले ही होते है , जो अपने फ़ायदे के लिऐ औरत का सौदा करते हैं । क्या जो पुरूष इनसे सम्बन्ध बनाते है वो सभी अविवाहित होते है , ग़र नही तो विवाहित उन पुरूषो को भी कोई ऐसा ही नाम क्यों नही दिया जाता । अगर कोई स्त्री अपने भूखे बच्चे केलिए रोटी कमाने के लिए, अपने परिवार का पेट पालने के लिए मजबूर होकर ये व्यवसाय अपनाती है तो हमे उसकी कद्र करनी चाहिए ,उसके लिए ये एक काम है । हर काम दूनिया मे एक लड़ाई है , यहाँ हर इन्सान अपने लिए लड़ता है , इस बेरहम, दयाहीन, अनुमान लगाने वाली इस दूनिया से हर इक दिन लड़ कर बिताना होता है , ऊँच-नीच , झाड़ु वाला हो या कचरे वाला कोई भी कैसा भी , कोई छोटा है या कोई बड़ा , इन्सान सभी सम्मान के अधिकारी हैं ।
मौलिक एवं स्वरचित
प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)
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