नज़्म

मंज़िल ही असली ठिकाना

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 16 Oct, 2020 | 1 min read

ये मेरा घर मेरा नहीं ,तेरा द्वार ही मेरा असली ठिकाना है

एक दिन छोड़ इस घर को वहीं पर ही तो मुझे आना है ।


पता है सब जानता हूं, फिर भी तेरा- मेरा का राग अलापता

हूं , तैरी चौखट पर आकर सिर झुकाना तो एक बहाना है ।


मालूम है सब मिलेगा तेरे द्वार से , फिर क्यों मांगु किसी और से

निज में ढुंढु निज को सदा , बस यही तो दिल को समझाना है ।


जब से पड़ी तेरी रहमत की नज़र मुझ पर मिल गई मंज़िल

 मुझे है अब हर सू सन्तोष , अब ना ज़िन्दगी में कुछ पाना है ।


ना प्यार गुलाबों से , ना कांटों से नफ़रत , ना शिकायत , ना

शिकवा , नहीं चाह धन- दौलत की , तेरी धुन में ही रहना है ।


खत्म हो गया मैं, मेरा, दर तेरा असली ठिकाना है , सब चाहते हैं

तुझे ,और तुम चाहते हो मुझे , यही तो मेरा असली ख़ज़ाना है ।

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Prem Bajaj

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