# तम्मन्ना- ए-दिल सो जाएं तेरी बाहों में ,
एक ख़्वाहिश मेरे ख्वाब दिखे तेरी निगाहों में,
जी लेते हम भी चार दिन और सनम जहां में,
ग़र ले लेते आप हमें अपनी पनाहों में #
##अलविदा ##
माना ये ज़रूरी है कि रूह से रूह का मिलन हो, मगर जब तक जिस्म ,जिस्म से ना मिले ,
तब तक भी सूकून कहां मिलता है इन्सान को ।
इसी तरह आशा को भी एक पल भी सुकून ना मिला , तरह रही है आज तक उस सुकुन
को जो हर पल बढ़ा रहा है दिले- बेताबी को । शादी को 25 साल हो गए तृप्त आज तक ना हो पाई वो ।
हर शब बिछावन की तरह बिखरती रही , देबु तृप्त हो कर मुंह मोड़ लेता , एक बार भी ना देखता पलट
कर , अतृप्त सी करवटें बदलती , सिसकती हुई , कब आंख लग जाती , पता भी ना चलता ।
हर शाम एक तम्मन्ना फिर से सर उठाती आएंगे साजन , सीने से उनके लिपट के , बांहों में टूटकर ,
बढ़ते सैलाब को ना रोक कर , ज़ज्बातों के तुफ़ान को बह जाने दूंगी तिनके की तरह , कह दूंगी आज ,
खुल के खेलो इस स़गेमरमर के शफ़्फ़ाक देह से , मगर हर भोर अधूरी तम्मन्ना के साथ ही होती उसकी ,
जो शायद कभी पूरी ना हो ।
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