आज फिर से उमड़ - उमड़ कर बादल आए हैं ,
फिर से सुनहरी यादों के वो बीते पल लाए हैं ।
तुम तो छोड़ कर चले दिए हमें भूला कर
हम तो तुम्हें एक पल ना भूलाए है ।
आज भी बादलों पर लिखती हूं कहानी तेरी
वहीं रंग, वहीं नूर तेरा बादलों में नज़र आए है ।
क्या रंग भरू मैं इन बादलों में ,सुनहरे बादल ,
सुनहरी यादें , सब तुम्हारे ही तो रंग समाए हैं ।
दो लकीरें क्या खींच दी मैंने इन बादलों पर ,
भूले - बिसरे पल सारे बादलों ने याद कराएं है ।
प्रेम बजाज
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.