बरगद का मै पेड़ हूँ , आँगन मे सदा मैं रहता हूँ ।
कुछ ना कहता कभी किसी से मूक देखता रहता हूँ ।
आँगन के इक कोने में पड़ा , तुम्हारा क्या मै लेता हूँ ।
कभी मै बच्चो का खिलौना बन जाता , ठँडी छाँव तुम्हे मै देता हूँ ।
तुम्हे ना कोई फर्क पड़ेगा मेरे इक कट जाने से ,
लेकिन जब मै नही रहूँगा याद करोगे मेरे ख़ज़ाने को
बच्चो का था मैं झूला बनता, ठँडी छँव तुमको देता।
किसी रूप में चाहे देखो , पेड़ों से ही जीवन फलता है
नहीं रहेंगे पेड़ जब कहां से ताज़ी ठंडी हवा तुम पाओगे ।
सांस भी ना ले सकेगा कोई , घुट कर ही रह जाओगे ।
करते हैं बार-बार विनती ये तुमसे मत काटो तुम इन पेड़ों
को , ग़र है वातावरण को स्वच्छ बनाना तो तुम सब पेड़ लगाना ।
बरगद का पेड़ ये देता तप्त सहारा , बुज़ुर्ग हमारे आसमां का साया , बांध के रखता परिवार में सारा ।
सारे में इसके सुख की सांस लेते हम ।
ना जाने कैसी हवा चली है किसी भी घर में बरगद के लिए जगह नहीं है ।
....बरगद रूपी ये हमारे बुज़ुर्ग माना कुछ हैं मीठे ....कुछ है फीके .. फिर भी है ये हमारे शुभचिन्तक इतनी बात जान लो तुम , आँगन से इस पेड़ कभी ना हटाना , वर्ना पड़ेगा फिर पछताना ।
....काश ..हर घर के आँगन मे सलामत रहे ये पेड़ तो क्यो बने वृद्ध-आश्रम , और ना हो कोई घर से महरूम ।
हर बरगद ये सोच रहा , घर- घर में क्यूं आंगन छोटा हो रहा ।
......काश..ये बरगद रूपी हमारे बुज़ुर्ग हर घर मे प्यार पाँए...।
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