क्यों बना मैं अपराधी , जाने ना कोई मजबूरी मेरी,
देखा बाप को मरते हुए , बिमारी से लड़ते हुए,
पैसा ना पल्ले पाई, कहां से लाए वो मां की दवाई,
भूख से बहन बिलखती थी , दूध के लिए वो रोती थी ,
मां भी तो चार दिन से भूखी थी,
मांगने पर मिली ना एक भी सूखी रोटी थी।
काम भी तो ना कोई देता था, कोरोना है इसका रोना रोता था,
आंखों से मगर सेठ तन की किताब वो पढ़ता था, इशारों से बातें करता था,
बदले में दूंगा चंद टुकड़े, आएगी अगर रात को कमरे में मेरे।
लाचार मां देख खाली पेट बच्चों का, सेठ को जा अपना तन बेचा।
शर्म से पिता ने की आत्महत्या, अनाथ बन गया था मैं छोटा सा बच्चा।
अब पैसा खूब कमाऊंगा, चाहे बनूं मैं चोर, डाकु, चाहे स्मगलर बन जाऊंगा।
खुब कमा के पैसा मैं मां को रानी बनाऊंगा, बहना को लाड लगाऊंगा।
बेशक कर के खून कमाऊं पैसा चाहे तो फिर सूली भी चढ़ जाऊंगा,
बस पैसा मैं कमाऊंगा, सिर्फ पैसा मैं कमाऊंगा।
प्रेम बजाज
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