कल एक झलक ज़िन्दगी को देखा मैनें
जैसे करते हुए उसे बंदगी मानो देखा मैंने ।
पराए तो गिरा कर माफी मांग लेते हैं
दर्द देते अपने लोगों को देखा मैंने ।
इन्सान को इन्सान ना समझें ऐसे उंचे
अंहकार में जीते अमीरों को देखा मैंने।
लोगों के सपने पल में हकीकत बन गए
उजड़ते खुद के सपनों को देखा मैंने ।
ए इन्सां क्या लाया क्या ले जाएगा साथ
टूटते अंहकारियों के अंहकार को देखा मैंने।
भोला-भाला नहीं हूं चालाक हूं बड़ा
कहते - सुनते लोगों को देखा मैनें ।
शायर बहुत हैं मगर जो दर्द बयां कर
सके शायर वो *प्रेम * को देखा मैनें ।
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