गज़ल

एक झलक जिंदगी

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 15 Oct, 2020 | 1 min read

कल एक झलक ज़िन्दगी को देखा मैनें

जैसे करते हुए उसे बंदगी मानो देखा मैंने ।


पराए तो गिरा कर माफी मांग लेते हैं

दर्द देते अपने लोगों को देखा मैंने ।


इन्सान को इन्सान ना समझें ऐसे उंचे

अंहकार में जीते अमीरों को देखा मैंने।


लोगों के सपने पल में हकीकत बन गए

उजड़ते खुद के सपनों को देखा मैंने ।


ए इन्सां क्या लाया क्या ले जाएगा साथ 

टूटते अंहकारियों के अंहकार को देखा मैंने।


भोला-भाला नहीं हूं चालाक हूं बड़ा

 कहते - सुनते लोगों को देखा मैनें ।


शायर बहुत हैं मगर जो दर्द बयां कर

 सके शायर वो *प्रेम * को देखा मैनें ।


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Prem Bajaj

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