पांच दिन का पर्व हिन्दू संस्कृति में बहुत ही अहम माना जाता। वैसे तो कार्तिक मास में पूरा मास दिए जलते हैं, लेकिन ये पांच दिन विशेष पर्व मनाया जाता है।
दीपोत्सव का अर्थ दीपों कि त्योहार, दीप माला , दीपों से सजा संसार , ये भुतल ।
दीपावली अर्थात दीप की आवली अर्थात पंक्ति,हर जगह दीपों की पंक्तियां अमावस्या की काली रात में भी उजियारा कर देती है ।
पांच दिन का ये पर्व,
पहले दिन धनतेरस जिसमें धन के देवता कुबेर और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।
दूसरे दिन नर्क- चतुर्दशी जिसे रूप चौदस भी कहा जाता है, इस दिन सुर्य भगवान की पूजा होती है, इस दिन सुर्य उदय से पूर्व स्नान करने की परंपरा है।
तीसरे दिन दिवाली के रूप में मनाई जाती है, मां लक्ष्मी , गणेश, सरस्वती और कुबेर की पूजा की जाती है,पूरे घर को रंगोली, दीपों इत्यादि से सजाया जाता है,इस दिन अच्छाई की बुराई पर जीत हुई , भगवान राम चौदह वर्ष का बनवास काट कर अयोध्या माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ लौटे थे, पूरी अयोध्या में दीपोत्सव मनाया गया ।
और चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पांचवें दिन भैया - दूज जिसे यम द्वितिय भी कहते हैं, ये भाई- बहन के पवित्र रिश्ते का पावन त्योहार है।
दीपोत्सव कि अर्थ केवल इतना नहीं कि भौतिक रूप से ही दीप जलाएं बल्कि मानसिक रूप से भी दीपोत्सव मनाना चाहिए ।
यदि से काम, क्रोध , लोभ, मोह का अंधकार मिटाएं, अन्दर की लौ भी रौशन करे,( मन चंगा तो कठौती में गंगा ) मन में किसी के प्रति भेदभाव , इर्ष्या भाव ना रहे ।
प्रत्येक जीव के लिए प्रेम भाव हो, बड़ों के लिए सेवाभाव हो।
त्योहारों के दीपोत्सव के साथ-साथ मन का दीपोत्सव भी मनाएं, तभी जीवन सार्थक है।
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