ठिठुरन

ठिठुरन

Originally published in hi
Reactions 0
483
Prem Bajaj
Prem Bajaj 02 Jan, 2021 | 1 min read



शीतल बयार बहती है, ठिठुरन बढ़ती जाती है,

सुरज छिप कर बैठ गया, पूस के ठंडे दिनों में,

पानी भी बर्फ सा जमता जाता है, बादल जैसे

घूम रहा धरती पर, कोहरा ऐसा छाया है, बदन

कांपता सर्द हवाओं से, हाथ-पांव भी लगे हैं

ठिठुरने पाले से, करते विनती सूर्य देव से, आ कर

दर्श दिखाओ ना, अपनी तेज किरणों से हमको थोड़ा

तपाओ ना, इस ठिठुरते पाले में थोड़ा चैन तो दिलाओ ना।

छोड़ रजाई तनिक हम भी देखे बाहर की ओर, लेकर हाथ

में गर्मागर्म चाय का प्याला,थोड़ी सेंकने धूप , रहम करो

ज़रा तुम उन पर पड़े जो किनारे सड़क के,ना कोई गद्दा,

ना रजाई पास उनके, ठंड में ठिठुरती हडि्डया उनकी,

पाले से किटकिटा रहे दांत हैं, डालो तपती किरणें उन पर,

ठंड से जो हो बेहाल रहे ।


प्रेम बजाज


0 likes

Published By

Prem Bajaj

prembajaj1

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.