ए खुदाया इतना संगदिल सनम ना बनाना किसी को
जितने संगदिल बन गए हम उनसे दूर होते - होते ।।
इश्क का समन्दर हमने देखा उनके नैनों में
अपने आखिरी समय में दुनियां से विदा होते - होते ।
कोई रही होगी मजबूरी उनकी भी जिसे ना समझे हम
वरना इतने संगदिल वो ना थे कि वो हमारे ना होते ।
वो चाहते रहे दिल ही दिल में हमें , और हमने चाहा
कि वो गाएं हमें शब्दों की माला में पिरोते - पिरोते ।
थक गए उन्हें हम ढूंढ -ढूंढ कर सारे जहां में जो चीर
कर देखा दिल तो पाया उन्हें वहीं इन्तज़ार करते-करते ।
मैं कैसे करता ब्यां अपने इश्क की कहानी उनसे
अच्छा होता वो खुद ही समझते , और महसूस करते ।
जिसे पाने के लिए खाई ठोकरें हमने , आज वही आए
खुद दर पे हमारे शोहरत अपनी नीलाम करते-करते।
मौलिक एवं स्वरचित
प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर )
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