किन्नर ... राम राम सेठ ,
""राम राम
"" क्या हुआ सेठ ? आज हमें देख के खुशी नहीं हुई ?
तुम तो हमेशा हमें देख कर खुश होते थे , कहते थे लक्ष्मी माता की
कृपा तुमसे ही होती है , आज मुंह क्यों लटका हुआ है , सब ठीक तो है ना ।
चलो , लाओ जल्दी से हमारा दिवाली का इनाम ।
"" सेठ इस बार कुछ कम रूपए देता है ।
"क्या हुआ सेठ आज सच्ची में मूड़ ठीक नहीं लग रहा , कोई तो बात है ,
सेठ बताओ तो हम भी तुम्हारे अपने है , क्या बात है ।
" अरे शीला क्या बताऊं तुम्हें , जो मुझ पर बीत रही है , वो तुम नहीं समझोगी ,
रूआंसा होकर " मुझे पोते की आस थी इश्वर ने पोती झोली में डाली ।
अरे बधाई हो सेठ इश्वर ने तुम्हे बेटी तो दी , हम जैसा तो नहीं बनाया , शुक्र मनाओ उस
परवरदिगार का जिसने झोली में फूल डाला , हमारे मां - बाप की झोली में देखो ,
इश्वर ने हमारे जैसा कैक्टस दिया । सेठ हमेशा लक्ष्मी - लक्ष्मी करते हो आज लक्ष्मी स्वंय
पधारी तो उसका आदर नहीं ?
बेटी या बेटा दो ही दे इश्वर सबको , हम जैसा किसी को ना दे ।
और सुनो , परवरदिगार ने हमें तुम जैसा चाहे नहीं बनाया , लेकिन एहसास तो हमें भी
दिए हैं , ज़ज्बात हमारे भी होते हैं, दिल हमारे अन्दर भी तुम सा ही धड़कता है ।
जज्बातों से भरे इन्सान तो हम भी हैं !
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