बस, अब और नहीं

खड़ी बोली

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 03 Oct, 2020 | 1 min read

हरियाणवी भाषा


राम, शहर में छोटी सी नौकरी करता है , बेटी की पढ़ाई के कारण परिवार को भी गांव से शहर साथ लाया ,

क्योंकि गांव में स्कूल नहीं है । अभी एक साल हुआ है शहर आए और आठ महीने से कोरोना की वजह से ना

स्कूल खुल रहे हैं , ना गांव जा सकते हैं ,पहले तो हर सप्ताह मां-बाबा से मिलने गांव जाते थे ‌।


मां हम गांव कद ने जावेंगे , दादी-दादा, चाचा-बुआ ते मिलने ।

यु कोरोना जा कर यूं नी रहा ? मन्ने चाचा,बुआ, दादा, दादी की बड़ी याद आवे है 😢 ।

हां बिटिया मरने भी घंडी़ याद आवे है , पर का करब मजबूर हैं ।

राम थमीं कुछ जगाड़ कर दो , बथेरा टेम हो गया इब तो , गांव गया ।

हां साबित्री , तो साची कहे  है , बस इस तो बहोत हो गआ ।

कब तक हम परिवार ते दूर रहें , इब तो करोना ते लड़ना पड़ेगा , हार कोना मानेंगे ।

बार- बार साबुन ते हाथ धोना, मुंह अर नाक पर मास्क लगाणा , किसी ये गले ना मिलना ,

तीन फुट की दूरी बनाणा , बाहर का कुछ नी  खाणा , इस हमे यू सब करना पड़ेगो , अर औरां ये भी सिखाणा पड़ेगो ‌।

चल  इस तो इसी  हफ्ता गांव चालांगे । 

और मुनिया बहुत खुश हो जाती है कि वो दादा - दादी और सबसे मिलेगी , और सब सोशल डिस्टेंस और पूरी केयर के साथ गांव के लिए निकल गए ।

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Prem Bajaj

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