हरियाणवी भाषा
राम, शहर में छोटी सी नौकरी करता है , बेटी की पढ़ाई के कारण परिवार को भी गांव से शहर साथ लाया ,
क्योंकि गांव में स्कूल नहीं है । अभी एक साल हुआ है शहर आए और आठ महीने से कोरोना की वजह से ना
स्कूल खुल रहे हैं , ना गांव जा सकते हैं ,पहले तो हर सप्ताह मां-बाबा से मिलने गांव जाते थे ।
मां हम गांव कद ने जावेंगे , दादी-दादा, चाचा-बुआ ते मिलने ।
यु कोरोना जा कर यूं नी रहा ? मन्ने चाचा,बुआ, दादा, दादी की बड़ी याद आवे है 😢 ।
हां बिटिया मरने भी घंडी़ याद आवे है , पर का करब मजबूर हैं ।
राम थमीं कुछ जगाड़ कर दो , बथेरा टेम हो गया इब तो , गांव गया ।
हां साबित्री , तो साची कहे है , बस इस तो बहोत हो गआ ।
कब तक हम परिवार ते दूर रहें , इब तो करोना ते लड़ना पड़ेगा , हार कोना मानेंगे ।
बार- बार साबुन ते हाथ धोना, मुंह अर नाक पर मास्क लगाणा , किसी ये गले ना मिलना ,
तीन फुट की दूरी बनाणा , बाहर का कुछ नी खाणा , इस हमे यू सब करना पड़ेगो , अर औरां ये भी सिखाणा पड़ेगो ।
चल इस तो इसी हफ्ता गांव चालांगे ।
और मुनिया बहुत खुश हो जाती है कि वो दादा - दादी और सबसे मिलेगी , और सब सोशल डिस्टेंस और पूरी केयर के साथ गांव के लिए निकल गए ।
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