बिना रूके मोहब्बत की राह में कदम हम बढ़ाते रहे
पैरों में बंधते ही बंदिशों की जंजीरें हम छटपटाते रहे ।
बहृर , शेर, मतला, मकता का अर्थ मालूम नहीं हमें
फिर भी वो ज़ालिम , ग़ज़ल हमसे लिखवाते रहे ।
हाल - ए - दिल हम भी सुनाते उन्हें , मगर वो बिन
बोले चल दिए , और हम बैठे आंसू यूं ही बहाते रहे ।
नाज़ुकी उनके लबों की क्या कहिए , जैसे पंखुड़ी
गुलाब की , हवा में लहरा के चुम्बन हमें सताते रहे ।
माना कि हर पल रहती है दिल में सूरत तुम्हारी
आंखों से दूर जाकर क्यों आप यूं हमें तरसाते रहे ।
बड़े शौक से सजाई थी महफ़िल हमने दिल की
वो ना आए ,हम दिल को झुठी तसल्ली दिलाते रहे ।
ना समझे सके कभी आप * प्रेम* के प्यार को
हम तो दमें-आखिर तक मोहब्बत निभाते रहे ।
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