जुगनू

आज के समय में बेटियों की दुर्गति

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 07 Oct, 2020 | 1 min read

आइ जब से मां की कोख में , मां की लाडली , बाप के घर की रोशनी सब कहते हैं , मां ने रखा नाम रोशनी , बाबा जुगनू बुलाते हैं ।


लगा कर के कलेजे से मुझको पलकों पे सब बिठाते थे ।

उड़ती फिरती घर आंगन में , पंख हवा में लहराते थे ‌।

जुगनू जैसी मेरी चमक चांदनी देख सब हर्षाते थे ।

आंगन से पहुंची बगिया में , फैला दी रोशनी अपनी अंधियारी रातों में ।

चमक के ऐसे उड़ी आकाश में तारा जैसे चमके नील गगन में ।


 देखा फिर एक शैतान मच्छर ने ,  आंखों में उसके चुभ गई चमक मेरी , बस फिर समझो आ गई शामत मेरी ।

झट से आया पास मेरे वो ,आकर के धर दबोचा मुझको , छीना-छपटी में पंख मेरे टूटे , चमक मेरी भी जाने कहां फिर खो गई वो ।

मां रोए ,बाबा आंसु बहाते हैं , कोई तो इन्साफ दिला दो ये गुहार लगाते हैं ।

देख के मेरा हाल ऐसा सब परिंदे भी चादर तान के सोते हैं , ये जहरीले मच्छर आज फिर किसी जुगनू को मसलने को आजाद यूं घूमा करते हैं ।


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Prem Bajaj

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