आइ जब से मां की कोख में , मां की लाडली , बाप के घर की रोशनी सब कहते हैं , मां ने रखा नाम रोशनी , बाबा जुगनू बुलाते हैं ।
लगा कर के कलेजे से मुझको पलकों पे सब बिठाते थे ।
उड़ती फिरती घर आंगन में , पंख हवा में लहराते थे ।
जुगनू जैसी मेरी चमक चांदनी देख सब हर्षाते थे ।
आंगन से पहुंची बगिया में , फैला दी रोशनी अपनी अंधियारी रातों में ।
चमक के ऐसे उड़ी आकाश में तारा जैसे चमके नील गगन में ।
देखा फिर एक शैतान मच्छर ने , आंखों में उसके चुभ गई चमक मेरी , बस फिर समझो आ गई शामत मेरी ।
झट से आया पास मेरे वो ,आकर के धर दबोचा मुझको , छीना-छपटी में पंख मेरे टूटे , चमक मेरी भी जाने कहां फिर खो गई वो ।
मां रोए ,बाबा आंसु बहाते हैं , कोई तो इन्साफ दिला दो ये गुहार लगाते हैं ।
देख के मेरा हाल ऐसा सब परिंदे भी चादर तान के सोते हैं , ये जहरीले मच्छर आज फिर किसी जुगनू को मसलने को आजाद यूं घूमा करते हैं ।
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