भटकती है ज़िन्दगी वीराने में फिर भी गीत गाता रहता हूं मैं
विरह- गीतों से उर में मचलते अरमानों को भरमाता रहता हूं मैं ।
मन में उठी हूक में ना जाने कितनी छुपी हुई पीड़ा है
समझाने को उस पीड़ा को नीर बहाता रहता हूं मैं ।
तड़प उठती है ज़िन्दगी मेरी स्मृति की कसक उसकी पा कर
दी मुझको जिसने पीर आभार उसका जताता रहता हूं मैं ।
बची - खुची नजदिकियां भी खत्म हो गई अब तो
उदासियों से भरी ज़िन्दगी में भी बहार लाता रहता हूं मैं ।
व्यथा * प्रेम* के नयन का नीर बन कर बह रही है
फिर भी हर पल देखो बेवजह ही मुस्कराता रहता हूं मैं ।
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