क्यूं जलाते हो दिल हमारा कर के हमसे किनारा ,
रह कर दूर तुमसे अब ना होगा हमारा गुज़ारा ।
ग़र नहीं पूरे करने थे अहदे-इल्तिफाते
तो क्यों तुमने पकड़ा था हाथ हमारा ।
तुम क्या गए ज़माना और वक्त भी साथ-साथ
बिगड़ गया हमारा , अब नहीं होता बिन तेरे गुज़ारा ।
रंगत ज़रा भी ना आई रूख़सारों पे उनके ,
खुन-ए-ज़िगर भी हमने पिलाया हमारा। ।
अब भी ग़र आ जाओ तो ऊम्र अभी भी बहुत है ,
फ़कत आधी ही कटी है करते इन्तज़ार तुम्हारा ।
दमें - आखिर तक करेंगे इन्तज़ार तुम्हारा, ग़र
आए तुम तो मशहर में भी रहेगा इंतज़ार तुम्हारा ।
लगा के दिल तुमसे शिकवा रहा ताउम्र खुद से
रहा इश्क अधूरा वक्त को नामंजूर था मिलन हमारा ।
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