हम लिखते हैं

कहते हैं लोग हम लिखते हैं

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 02 Jan, 2021 | 1 min read

कहते सुना है लोगों को हम लिखते हैं,

रो दे पड़ने वाला वो अफसाना लिखते हैं।


बर्बाद होना पड़ता है प्यार में हमेशा,

वरना आसानी से रिश्ते कहां निभते हैं।


प्यार में यार के इस क़दर डूबे हैं हम,

 खड़े उनके लिए सरे बाज़ार बिकते हैं।


रोते हैं चुपके-चुपके याद में उनकी हम,

मगर हंसते हुए सारे जहां को दिखते हैं।


कहने को तो सोते हैं मखमल के गद्दे पर,

जुदाई में यार की अंगारों पर सिकते हैं।


ढुंढते फिर रहे हैं उन्हें कुल जहां में हम,

इसलिए एक जगह कहां हम टिकते हैं।


पढ़ोगे *प्रेम* को तो रो दोगे तुम भी,

वो दर्दे-दिल, ज़ख़्म-ए-जिगर लिखते हैं।



प्रेम बजाज

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Prem Bajaj

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