ग़र आज मय नहीं है साकी तो कोई ग़म नहीं, आज अपनी नज़रो के जाम ही पिला दे साकी ,
' सहवा' का सैलाब तेरी आँखो मे कुछ कम नही साकी ।
कँजूसी ना कर आज पिलाने मेंसाकी , वर्ना रँज रहेगा ताउम्र इस बात का साकी ,
कि हम तेरे मयखाने में आकर भी 'मसरूर ' ना हुए ।
बूँद-बूँद मत पिलाना हमें ,इक बार में ही सारी मय उँडेल देना मुझ पर साकी ।जब तक होंगे ना मसरूर
हम ना आ पाऐंगे तुम्हारे करीब हम ।
तुम हो कली नाज़ुक तो हम 'दामने- खार ' हैं, तुम शीशा-ए-मय की तरह हो और हम दरिया-ए-बेकरान हैं , तुम पाकीज़ा हम रूह-ए-बे-नंग-ओ-नाम (बिना नाम और चरित्र)हैं ।
ला साकी अब और ना देर कर अब तो पिला दे इन नैनो की हाला, ग़र आज तेरे दर से खा़ली लौटा
साकी , तो कयामत होगी , तेरे दर से आज रूख़स्त मोहब्बत होगी साकी ।
यूँ बसते दरिया छोड़ जाऊँगा मैं साकी,ग़म का आलम तुम्हे तड़पाएगा ,जब भी मै तुम्हे याद आऊँगा साकी .......
ना कर जिद ए साकी इक बार तो पिला दे ए साकी.... अब और ना मेरा इम्तहान ले , अब तो पिला दे साकी....अब तो पिला दे साकी ......
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