हरीश बजाज प्राइवेट दफ़्तर में क्लर्क बाबू की नौकरी , दो बेटे, बड़ा गौरव , छोटा सौरभ मन में चाह कि बच्चों को अपने जैसा क्लर्क नहीं बनाना , इसलिए ओवर टाइम भी करता था , पत्नी भी लोगों के कपड़े सिला करती थी , ताकि बच्चों को अच्छी तालीम दे सके ।
दोनों बेटे पढ़-लिखकर ऊंची पोस्ट पर बड़ी-बड़ी कम्पनियों में नौकरी करने लगे पिता ने रिटायर होने के बाद दोनों बेटों में सबकुछ बांट दिया ।
सुनो," सब कुछ मत बांटो बच्चों में, कुछ तो अपने लिए रखो, कल को अपने बुढ़ापे के लिए"!
"तुम तो ऐसे ही चिंता करती हो बुढ़ापे के लिए बच्चे हैं ना हमें किस बात की चिंता"!
शुरू में दोनों बच्चों ने खूब प्यार दिखाया फिर पुश्तैनी घर भी जब बंट गया दोनों में, मां - बाप ने सोचा, चलो अब बच्चों के साथ ही रहा जाए , कभी एक के कभी दूसरे के पास। गौरव दिल्ली , सौरभ मुम्बई हरीश ने दोनों बेटों से बात की।
गौरव, "सौरभ क्या तुम दोनों को रख सकते हो ? मेरा तो मुश्किल है इतनी मंहगाई उस पर से बच्चों की भी अब बड़ी क्लासे हैं उनके भी तो खर्चे हैं"!
"तो भैया मेरा भी तो यही हाल है"!
" तो ऐसा करते हैं एक को तुम रखो एक को मैं"!
" हां ये ठीक रहेगा , ना आप पर ज्यादा बोझ पड़ेगा ना मुझ पर पापा को मैं रख लेता हूं आप मां को ले जाओ"!
लाचार मां - बाप दो हिस्सों में बंट गए, कुछ समय बाद हरीश की तबीयत बहुत बिगड़ गई, डाक्टर ने बताया कुछ पता नहीं कब तक हैं।
दोनों की इच्छा है कि अंतिम समय में तो साथ रहे, लेकिन दोनों को रखने के लिए कोई राज़ी नहीं।
"गौरव बेटा, तेरे पापा का कुछ पता नहीं कब क्या हो जाए, हम चाहते हैं अन्तिम समय में हम साथ रहे"!
"मां आप जानते हो दो का खर्च ना मैं उठा सकता हूं ना सौरभ और फोन पर तो रोज़ बात कर ही लेते हो। ज्यादा है तो आप मेरे फ़ोन से वीडियो काल कर लिया करो लो मैं अभी आपकी बात कराता हूं"!
फ़ोन पर दोनों विडियो काल पर बात कर रहे हैं ।
हरीश ... "आशा तुम्हें देख कर बहुत मन खुश हो गया, ऐसा लग रहा है जैसे हर एक - दूजे के पास हैं"!
"हम पास ही तो हैं दूर कहां है, ये तो सिर्फ राहों की दूरियां हैं दिलों की नहीं"!
"आशा तुम्हें याद है, कभी - कभी तुम एक गीत गुनगुनाया करती थी"!
" वो मैं कैसे भूल सकती हूं अब तो हर पल वहीं गीत गुनगुनाती हूं"
"आज फिर से वही गीत सुनने का मन है, मैं भी तुम्हारे साथ गाऊंगा"
दोनों गाने लगते हैं .......
##तेरे बिना ज़िंदगी से शिकवा तो नहीं , शिकवा नहीं , शिकवा नहीं , तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन ज़िन्दगी तो नहीं ##
गाते -गाते हरीश ख़ामोश हो गए, आगे तो गाईये भूल गए क्या, गौरव के पापा बोलिए ना क्या हुआ, लेकिन वो तो खामोश हो गए सदा के लिए और इसके साथ ही आशा की आत्मा भी विलिन हो गई परमात्मा में!
यह देख गौरव रो रहा है, गौरव का बेटा साहिल .... पापा ……… "क्यों रो रहे हैं आप , अब तो कोई दुविधा ही नहीं रही कि दोनों को एक साथ कैसे रखें, लेकिन मेरे दिल में एक दुविधा है, क्या दादू - दादी को वहां भी अलग -अलग रखा जाएगा या वहां दोनों एक साथ रह सकते हैं ,साहिल की आंखों में बहुत से सवाल नज़र आए गौरव को, लेकिन वो उसके दिल की दुविधा को मिटाने में असमर्थ था।
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