हैलो .......""शीतल बिटिया कहां हो, कब तक पहुंचोगी , कब से राह तक रहे हैं ?
""बस मां दस मिनट में पहुंच जाएंगे , अभी - अभी बस से उतरे हैं बस रिक्शा किया और सीधा आप लोगों के पास ।
दस - पंद्रह मिनट बाद शीतल अपने मायके पहुंची जाती है , मां - पापा ,भाई - भाभी , बच्चों से सबसे मिलती है उसका बेटा सौरभ भी सबसे मिलता है ।
""अरे बुलबुल दिखाई नहीं दी वो कहां है ,बाहर है क्या ??
""नहीं, बुलबुल घर पर ही है, उसे नहीं लाई।
""कितनी बार कहा है उसे यूं अकेला ना छोड़कर आया कर लेकिन तु है कि सुनती ही नहीं ।
""अरे मां बुलबुल अकेली कहां है दादा - दादी , चाचा , बुलबुल के पापा सभी तो हैं , और छोटी बुआ भी तो शहर में ही रहती है वो भी अक्सर आ जाया करती है । और वो गौरव जो मेरी बड़ी ( जीजी ) ननद का बेटा वो तो बहुत ख़्याल रखता है बुलबुल का ।
""हे भगवान् ना जाने कब समझेगी ये लड़की, आज के वक्त में अपने जाए पर तो भरोसा नहीं और तु चली औरों पे भरोसा करने ।
""ओफ्फो मां , अब छोड़ो भी, कुछ नाश्ता - वाश्ता कराओ भूख लगी है ।
प्रेम ( शीतल की मां ) नाश्ता बना रही है और खो जाती अपने जीवन के उन दिनों में जो नासूर बन कर उसे हर पल कटोचते हैं । उसकी बुआ का लड़का ( गोविंद ) भी तो उन्हीं के घर में रहता था , बहुत भरोसा था सभी को उस पर तभी तो कहीं भी जाना हो गोविंद के साथ उसे भेज देते थे , खुद कहीं जाना है तो घर पर गोविंद के सहारे छोड़ कर निश्चिंत हो जाते थे , कहते थे गोविंद भाई है ना तेरे साथ , वो तेरा अच्छे से ध्यान रखेगा , लेकिन कोई नहीं जानता था कि कैसा ध्यान रखता था वो घर पे अकेले होते जब, कभी उसके शरीर पर हाथ फिराता , कभी उसकी छाती को चुमता , कभी उसके गुप्तांग को हाथों से सहलाता और साथ में कहता ""मां को मत बताना वरना मां तुम्हें ही डांटेगी , उससे बात करते हुए गंदे- गंदे शब्दों का इस्तेमाल करता , फिर कहता ये शब्द कितने अच्छे हैं ना पर मां को मत बताना , हर बात नहीं बताया करते , और वो चुप रह जाती ।
""मां आप भी आओ ना सब मिलकर नाश्ता करते हैं ।
"" अं ..... हां हां आई ........आई ।
सभी नाश्ता करते हैं मिल बैठ कर लेकिन प्रेम का मन कहीं और भटक रहा है । जल्दी से सारा काम निपटा कर शीतल और प्रेम दोनों मां - बेटी आ बैठती है कमरे में , सौरभ मामा - मामी से बातें कर रहा है और शीतल मां से ।
""मां कहां खो जाती हो , क्या हो जाता है आपको बुलबुल की इतनी चिंता क्यों करती हो , वो अब छोटी बच्ची नहीं है ।
"" शीतल, बेटा तुम बहुत भोली है, इस तरह लड़की जात को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए, मुझे पता है अब तुम कहेगी सब तो हैं उसके पास, मैं जानती हूं सब हैं , लेकिन तु तो नहीं ना ।
"" मां आप बेकार में चिंता करती हो, बुलबुल भी आप ही की तरह स्ट्रांग है , तभी तो आपके बचपन का नाम बुलबुल मैंने उसका नाम रखा ।
"" तुझसे कितनी बार कहा मेरे बचपन की कोई बात ना किया करो ।
"" क्यों मां , आप हमेशा ऐसे कह के मुझे चुप करा देते हो, आज आप को बताना होगा कि आखिर क्या ऐसा दु:ख है जो आपको अन्दर ही अन्दर साल रहा है ।
प्रेम शीतल को अपने बीते कल की सारी घटनाएं बताती है ।
"" तुमने अपनी बेटी का नाम बुलबुल इसलिए रखा कि मुझे बचपन में बुलबुल बुलाते थे सब , तु कहती हैं ना कि मां मैं भी अपनी बेटी को इस बुलबुल जैसा स्ट्रांग बनाऊंगी ।
तो सुन ये बुलबुल बचपन में इतनी स्ट्रांग नहीं थी जितनी अब हो गई है। ज़माने ने इसे पत्थर बना दिया है ।
मेरी बुआ का लड़का हमारे ही घर रहता था , और उसके बारे में सब कुछ बताया शीतल को कि वो प्रेम के साथ कैसे और क्या किया करता था , उसके बाद चाचा की शादी थी , उसने भी हाथ आजमाने के लिए उसे ही चुना उस पर अपने तरीके अपनाता कि वो अपनी बीवी के साथ गृहस्थ कैसे रहेगा। तब भी उसे किसी से कुछ ना बताने को मजबूर किया गया।
छोटे मामा नानी के कहने से बाहर थे उन्हें समझाने के लिए हमारे यहां पिताजी के पास भेजा गया, मामा ने भी जब - जब अकेली देखा, कभी होंठों का रस पिया तो कभी जिस्म पे हाथ फेरा।
जो भी रिश्तेदार आता हर कोई किसी ना किसी बहाने प्यार से और कोई नज़रों से बदन को छू जाता ।
"" हे भगवान् मां आप ने इतना सहा, विरोध क्यूं नहीं किया किसी का ?
"" बेटी , विरोध करना औरत के नसीब में इश्वर लिखना भूल गया था।
विरोध करती , आवाज़ उठाती भी तो किसके खिलाफ , सभी पीड़ा देने वाले अपने सगे ही तो थे , किसकी शिकायत किससे करती ।
इसलिए मुझे इस बुलबुल नाम से ही भय लगता है, जो मेरे साथ बीता वो तेरे साथ ना हो, इसलिए मैं एक पल के लिए भी कभी तुझे अकेला नहीं छोडती थी , कहीं भी जाती थी , तुझे हमेशा साथ लेकर जाती, कि कहीं ऐसा ना हो , फिर से वही पीड़ा सामने आए । इसलिए तुझे हर बार यही कहती हूं बुलबुल को अकेला मत छोड।
"" नहीं मां मैं बुलबुल के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी। मैंने बुलबुल को सब समझाया हुआ है , हमारी बुलबुल गुड टच, बैड टच , अच्छा क्या , बुरा क्या , किस की हरकत किस हद तक बर्दाश्त करनी है, किसे पलट कर कैसे और कब, कहां वार करना है , ये सब जानती है , और आजकल तो स्कूलो में भी बच्चों को ऐसे विषयों पर जानकारी दी जाती है।
मां ये आज की बुलबुल है , 21 स्वीं सदी की बुलबुल, जो ना जुल्म सहेगी और ना किसी को सहने देगी ।
इंट का जवाब पत्थर से देगी , वहशी दरिंदों को सबक सिखाएगी।
ये 21सवी सदी की बुलबुल है ।
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