एक दिन वो यूँ बोले मुझसे एक मेरे हमसफ़र चलो किसी होटल में जाऐंगे ,
मिल कर हम - तुम खाना खाऐंगे , थोड़ा सा घुमेंगे फिरेंगे और थोड़ा सा इश्क लड़ाऐंगे ।
मैं बोली यूँ पलट के उनसे 3 साल बाद हम 60 के है जाऐंगे , अब इस उम्र में क्या ख़ाक इश्क लड़ाऐंगे ??
हमसफ़र मेरे इक - दूजे के पीछे हम - तुम अब कहाँ दौड़ पाऐंगे , जवाब देने लगे हैं घुटने, कैसे छुपेंगे पेड़ो के पीछे, मोटे हो गए हैं कितने ।
गाने भी तो गा नहीं सकते साँस फूलने लगती है, होता है कही नाचने का मन तो बुढ़ापे में मस्ती चढ़ी है ,बातें करते हैं ये लोग । करके चियरस वहि्सकी के पैग को आन्नद लेते थे पीते हुए , अब तो चढ़ जाता है नशा आधी बीयर की बोतल में ।
कहते मुझको सुन मेरी ज़ोहरा ज़बी , वो इश्क तो इश्क ही नहीं था कभी ।
वो तो थी चाह, एक ललक , एक तड़प एक-दूजे को पाने की , हमसफ़र बनाने की ।
असली इश्क तो ये है जाना .. रहती है चिन्ता एक-दूजे से दूर जाने की ,
ग़र मैं चला गया दूर तुमसे तो कैसे रह पाओगी तुम बिन मेरे ,
ग़र खुदा ना करे तुम पहले चली गई मुझसे दूर तो खाता फिरूगां मैं ठोकरे ज़माने की ।
अरी पगली इस उम्र में तो असली इश्क होता है , हमसफ़र का इम्तिहान होता है ।
तुम बनाओगी प्यार से खिचड़ी मेरे लिए मैं बनाऊंगा तुम्हारे लिए चाय ।
इस इश्क का तो असली आन्नद है फिर खा कर के दोनों एक साथ जा बैठेंगे हरी के चरणों में ,
हरी गुण गाऐंगे , वही तो परम आन्नद है ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
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शुक्रिया 🙏🌹
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