धरती से सदा प्यार किया करता अम्बर
माँग उसकी सुरज से भरा करता अम्बर ।
दूर चाहे कितना भी वो हो जाए उससे
पर क्षितिज पर जा मिला करता अम्बर ।
ना डूबे घने तिमिर में उसकी प्रियतमा
उजियारा उसको लाकर दिया करता अम्बर।
बरसा कर बादलों से जल की धारा को
धरती की प्यास बुझाया करता अम्बर ।
छिटका कर के पूनम की चाँदनी को
धरती को उपहार दिया करता अम्बर ।
तपा-तपा कर रोज़ ही खुद को, धरती से
प्यार का इकरार किया करता अम्बर ।
रूठा करती धरती फिर भी उससे
हर बार ही मनुहार किया करता अम्बर ।
धरती अम्बर की ही प्रियतमा है
उसी का श्रृँगार किया करता अम्बर ।
सदियों से ही * प्रेम * कर रहा उसे
नहीं कभी कोई कमी किया करता अम्बर
प्रेम बजाज
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