बहुत अच्छा लगता है तेरा अपनापन दिखाना ,
वो तेरा मुझे ओ मेरी प्यारी कह के बुलाना ।
कभी रूठना मेरा और तेरा प्यार से मनाना ,
ना मानूं तो थपथपा कर मेरे गालों को जानूं कहकर बुलाना ,
फिर चुपके से मेरे लबों से अपने लबों के पैमाने टकराना ।
कोई हो मुश्किल तो " मैं हूं ना " तेरा ये कह कर ढांढस बंधाना ।
कभी मेरे दृगजल को अपने रसीले लबों पे लेना ,
कभी रख हथेली पर उन्हें सीने से लगाना ,
कभी उस पर तेरा भी चक्षुजल बरसाना ।
प्यार से भर आगोश में वो मुझे गले लगाना ,
हां अच्छा लगता है , तेरा इस तरह प्यार जताना ।
चांदनी रात में देना बाहों का सिरहाना ,
कभी सीने पे अपने मेरे गेसू रख कर सहलाना ।
कभी बांधना बाहुपाश में ,नशीले नैनों के जाम पिलाते हुए ,
उंगलियों से मेरी कस्तुरी को छुना , और मुझे गुदगुदाना ,
उस पर मेरा शर्माना ।
उफ्फ, बस अब और नहीं सब्र कह कर मेरे शफ्फाक बदन से खेलना ,
हटा कर सब शर्मो - हया के पर्दे एक - दूजे में समा जाना ,
दो जिस्मों का एक हो जाना ,और मेरा चर्म सीमा का आनन्द पाना ।
हां .............. बहुत अच्छा लगता है तेरा ये प्यार का तराना , तेरा मुझको यूं गुनगुनाना ।
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