रामु मोची दिन - रात मेहनत करके अपने इकलौते बेटे को खूब पढ़ाता है।
रामु मोची का बेटा सोहन भी खूब मेहनत करता है और एम.ए., एम. एड. में अच्छे नंबरों से केवल पास ही नहीं होता, अपितु पूरे राज्य में अव्वल आता है।
रामु मोची पूरे गांव में मिठाई बांटता है, कि उसका बेटा सोहन अव्वल आया है, सारे गांव वाले रामु को बधाई देते हैं, और दुआएं करते हैं, कि ऐसा लायक बेटा इश्वर सभी को दे ।
सब लोग बातें कर रहे हैं, एक "" अब तो रामु के बेटे को बहुत अच्छी नौकरी मिलेगी, इतना पढ़-लिख जो गया है"
दूसरा ,"" हां भाई ये तो सच कहा, इतना ज्यादा पढ़ा दिया रामु ने बेटे को, बहुत हिम्मत की है, वो क्या कहते हैं, एवें, अवेध, और कुछ अब, अड "।
सोहन, " काका एम.ए. एम.एड. "
" हां , हां वही बचुआ, बस अब तुम्हार अच्छी सी नौकरी लग जाए तो रामु की तकदीर संवर जाए"
रामु, "" हां भईया, अब तो हमारी तकदीर बिकवा की नौकरी की मोहताज है।"
सोहन, " नहीं बाबा, तकदीर नौकरी की मोहताज नहीं, हमारी तकदीर तो हमारे हाथों में है, अगर नौकरी अच्छी नहीं मिलेगी तो क्या हम ऐसे तकदीर के सहारे थोड़े ही बैठेंगे। मैं कल से ही आपके साथ आपके काम में मदद करूंगा।
आपने लोगों के फटे जूते सिलकर मुझे यहां तक पहुंचाया है, ये आपके हाथों का ही तो कमाल है, आपकी मेहनत रंग लाई है बाबा, अब हम दोनों मिलकर और मेहनत करके इस काम को आगे बढ़ाएंगे"
और इस तरह रामु और सोहन दोनों मिलकर जूते सिलने का काम करने लगतै है, और इस तरह नया चमड़ा लेकर ने जूते भी सिलने लगे, मेहनत दोनों की और दिमाग सोहन का, रंग लाया। काम खूब चल निकला और सोहन एक बहुत बड़ा जूते का व्यापारी बन गया।
आज सोहन की शादी है गांव में बहुत धूमधाम और चहल-पहल है।
सभी गांव वाले रामु और उसके बेटे सोहन की तारीफ करते नहीं थकते।
सच कहा था सोहन ने हमारी तकदीर हमारी हथेली में है।
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