सदियों का इंतजार ---पार्ट 1

इंतजार की घड़ियां बहुत तड़पाती है

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 03 Oct, 2020 | 1 min read

आशा पढ़ाई में होशियार, और ऊपर से बला की खूबसूरत , मोहल्ले में सबकी चहेती ।

 12 वीं में अच्छे अँको से पास हुई मेडिकल में दाखिला मिल गया मन की मुराद पूरी हो गई। बी.डी. एस. करना चाहती थी । चण्डीगढ़ कालिज में दाखिला हो गया ।

अम्बाला से चण्डीगढ़ अप-डाऊन करती थी । जैसे ही कालिज जाने लगी दिवानों की तो जैसे लाईन ही लग गई कालिज में हर कोई उससे नज़दिकिया बनाने की कोशिश करता लेकिन वो किसी को घास तक नहीं डालती । मोहल्ले में ने किराएदार आए थे, मां ने बताया था उनका बेटा सुरेश भी उसी कालिज में पढ़ता है । जब देखा तो पलकें ही झपकना भूल गई हो जैसे ।

गेहुँआ रँग, नीली आँखें, माथे पर छोटी सी बालों की लट शर्मीला सा । जिस के लिए हज़ारो लड़के जान देने को तैयार रहते थे हर पल, आज किसी और के लिए उसकी जान पर बन आई है। कलास में भी वो बस उसी को निहारा करती है ।

 सुरेश ज्यादा बात नहीं करता था बस अगर पढ़ाई के मुतालिक कोई बात हो तो बात कर लेता । आशा को हर पल इन्तज़ार रहता कि शायद सुरेश उसके मन की बात जान ले , पढ़ाई पूरी हो गई प्लेसमैंट हो गई थी दोनों की दोनों को अलग-अलग शहर में जोब मिल गई थी ।

आज फेयरवैल थी दोनो बहुत खूबसूरत लग रहे थे सुरेश मि० इव और आशा मिस इव चुनी गई कुछ दोस्त उनसे हँसी ठिठोली कर रहे थे कि दोनो एक दूसरे के लिए बने हैं लेकिन सुरेश अब भी चुप था , पार्टी के बाद वापिस आ कर अगले दिन दोनों अपनी -अपनी जोब के लिए जाने को तैयार आशा सुरेश के घर बाए बोलने जाती है सोचती है शायद अब सुरेश जान ले उसके मन की बात , शायद सुरेश भी उसे चाहता हो और इकरार कर ले लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगती हैं ,बेमन से वापिस आकर चली जाती है जोब पे दो साल तक किसी की कोई खबर नही ।

 माँ से पता चलता है कि सुरेश के जाते ही उसके पापा का भी तबादला हो गया तो वो लोग भी चले गए यहां से । दो साद बाद आशा के माता -पिता आशा की शादी तय कर देते हैं , चुपचाप शादी के लिए राज़ी लेकिन मन के किसी कोने में इन्तज़ार अभी भी सुरेश का है शायद कहीं से आ जाए और पढ़ ले उसके मन की बात लेकिन शायद कुदरत को मन्ज़ूर नहीं आशा दुल्हन बनी है , डोली सजी है ,बारात आई जैसे ही आशा जयमाला डालने लगती है , दुल्हे के साथ दोस्तों में सुरेश को खड़ा देख हत्प्रभ रह जाती है दोनों एक टक एक -दूसरे को अपलक देखते रहते हैं , दो कतरे आशा की पलकों से झरने लगते हैं , लेकिन आशा उन्हें पलकों में ही कैद कर लेती है ,आशा को लगता है कि अब सुरेश ज़रूर जान लेगा उसके मन की बात और कह देगा अपने भी मन की बात , इन्तज़ार है अभी भी आशा को

  क्या कह पाएगा सुरेश......क्या आशा का सदियों का इन्तज़ार खत्म हो पाएगा .....

क्रमशः

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Prem Bajaj

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