प्रेम किसी वक्त , मौके का मोहताज नहीं , प्रेम तो प्रेम है
जल की अविरल धारा ,धरती अम्बर का मिलना, प्रेम है ।
चांदनी को चांद से प्रेम है , किरणों का सूरज से प्रेम है
भंवरे का मंडराना प्रेम है , कली का खिलना प्रेम है ।
शमां का तड़पाना प्रेम है परवाने का जल जाना प्रेम है
विरह में तड़पना प्रेम है , प्रियतम का मिलना प्रेम है ।
इश्वर की अराधना प्रेम, भगवान् का भग्त के वश होना प्रेम है
नहीं दिखता आज कहीं भी राधा -कृष्ण सा प्रेम है ।
नदी का सागर में मिलकर अपना अस्तित्व खोना प्रेम है
चलती सांसों से दिल का धड़कना भी तो प्रेम है ।
निचोड़कर सूखे तन को भूखे शीशु का पेट भरना प्रेम है
दूर रह कर भी नज़दिकियों का एहसास होना प्रेम है ।
सबसे मिलजुलकर रहना, सबको अपना समझना
सबके दु:ख - सुख में साथ देना , हां ये प्रेम है, प्रेम है ।
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