वक्त - वक्त की बात है , ना जाने कब क्या मोड़ ले ले ये वक्त ,
रेत तो ठहर जाती है पर भर के लिए हाथों में
वक्त निकल जाता है पानी की तरह ,जैसे पानी नहीं ठहर
सकता हाथों में , वक्त भी कहां ठहरा कभी किसी के लिए ।
जाने क्यों सताता है वक्त , हाथ से निकल-निकल जाता है वक्त
फिर लौट कर क्यों ना आता है वक्त , हाथ से निकला जाता है वक्त ।
आया बचपन खेल खिलाया , चला गया फिर लौट के ना आया
उस वक्त की यादें बताएं , जो कभी ना फिर लौट के आए ।
आइ जवानी मस्ती छाई , वो भी तो ना फिर लौट के आई
क्यों है उसकी याद आई , जो है गए वक्त की परछाई ।
उम्र ढली झुर्रियां पड़ी , बिमारियों की लगी झड़ी , कहीं शुगर
कहीं बी.पी. , कहीं कोई और प्रोब्लम खड़ी , आंखों पे चश्मा
दिमाग पे जाला , कैसा आया वक्त निराला ।
क्यों आया है ये वक्त ,क्यों ना आता लौट के वक्त
गया वक्त ना पकड़ा गया , मोह माया में मैं जकड़ा गया ।
अब भी वक्त है पागल मनवा कल की चिन्ता कर लें तु
नाम का ख़ज़ाना भर लें तु , नाम का ख़ज़ाना भर लें तु ।
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