आती हैं याद वो तेरी बातें , सताती हैं मुझे बहुत दूरियां,
करते रहा करो हम से मुलाकातें
याद आते हैं वो लम्हे , वो मुलाकातें , मिला करते थे हम जब कभी,
होते थे बरसातों के दिन कभी, कभी होती थी चांदनी रातें
वो छतों पर आकर हम दोनों किया करते थे इशारों-इशारों में बातें ।
मेरी धड़कन में आज भी धड़कते हैं वो लफ्ज़ तेरी यादों के , दिया बाती सा था
प्यार हमारा हम बन गए हैं दरिया के किनारे हर पल होती हैं ग़मों की बरसाते ।
तुम्हें तो प्यार था फूलों से तुम क्या जानों कांटों के दर्द की बातें
तुमने तो बसा लिया अपना जहां हम बहाते हैं अश्क करके याद तुम्हारी बातें ।
उन कुछ लफ्जों की यादें ही तो हैं जो हमारे जीने का सहारा हैं बन जाते
काश तुम भी होते यादों से , बिन बुलाए ही चले आते ।
प्रेम बजाज
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