एक्सक्यूज़ मी ,. ... आशा के पीछे से आवाज़ आती है , जैसे ही आशा मुड़कर देखती है तो हैरान हो जाती है , अरे आप निलेश जी हैं ना फेमस कार्टुनिष्ट जी और आप आशा वोहरा जी मशहूर लेखिका , मैं कब से आप को देख रहा था पहचानने की कोशिश कर रहा था, कि आप तो अम्बाला में रहती है यहां नागपुर में भला कैसे , फिर सोचा चलकर पूछ ही लें । दरअसल मेरी ननद रहती है यहां, उनके घर फंक्शन है , वहां आई हूं । आपके कार्टून देखती रहती हूं, बहुत सुन्दर कलाकारी बक्शी है इश्वर ने आपको । धन्यवाद आपके लेखन भी मैं पढ़ता रहता हूं बहुत अच्छा लिखती हैं आप, आप का हर लेख पढ़ता हूं , की बार सोचा कि आपको फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजूं, फिर लगा पता नहीं आपको कैसा लगेगा , ना जाने आप करता सोचें । ऐसी कोई बात नहीं मुझे आपके कार्टून अच्छे लगते हैं और मेरे पास आपके सभी कार्टून की तस्वीरें हैं , तो क्या मैं आप को दोस्त समझूं । हाहाहा बिल्कुल ...... इस तरह दोनों में दोस्ती हो जाती है , मैसेंजर पर दोनों बातचीत करने लगते हैं । आशा और निलेश दोनों शादीशुदा हैं , बच्चों की शादियां हो गई , ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो गए दोनों , निलेश की पत्नी को सिर्फ अपने किट्टी पार्टियां और मौज मस्ती प्रणाली है , निलेश की तरफ कोई ज़िम्मेदारी नहीं समझती , अकेलापन सालता है निलेश को । उधर आशा का पति लापरवाह किस्म का उसे जैसे आशा से कोई सरोकार नहीं , आशा ने अपने लेखन को अपना साथी बना लिया था ।
लेकिन अब दोनों को एक-दूसरे से बातें करना अच्छा लगता है ,भले ना मिले मैसेंजर पर ही बात कर लेते थे तो दिलों को संतुष्टी मिल जाती थी ।दोनों अब एक दूसरे से बेतकल्लुफ़ हो गए , शायद दोनों के दिलों में कुछ-कुछ था एक -दूजे के लिए ।
आशा आज मुझे तुमसे कुछ कहना है, तुम वयस्त तो नहीं ??
हां कहो जो कहना है , मैं आनलाइन हूं अभी और खाली हूं , कोई काम नहीं अभी थोड़ी देर हम बात कर लेते हैं , बाद में लिखुंगी ।
# आई लव यू #
निलेश मत कहो ऐसा ।
लेकिन क्यों ???
इस अधेड़ उम्र में प्यार के कोई मायने नहीं ।
नहीं आशा ऐसा मत सोचो , मानता हूं कि हम अपना परिवार नहीं छोड़ सकते , और ना ही हमारी ऐसी उम्र है कि बागों में घुमाते हुए प्यार के गीत गाएं , लेकिन ❤️ पर तो किसी का ज़ोर नहीं , मैंने जिस दिन तुम्हारा पहला लेख पढ़ा था उस दिन से मैं तुम्हें प्यार करता हूं , ये दिल मेरे बस तो नहीं ।
निलेश तुम सच कह रहे हो दिल पर किसी का ज़ोर नहीं , मैं भी तुम्हें चाहने लगी हूं , लेकिन हमारी अपनी अपनी मर्यादाएं हैं , जिन्हें हम लांघ नहीं सकते ।
मैं कभी तुम्हें मर्यादा लांघने को नहीं कहुंगा, बस ऐसे ही फोन पर ही कभी -कभी बात कर लिया करना , वो भी अगर तुम्हारा मन हो तब , नहीं तो हम मैसेंजर पे ही बात कर लेंगे । चाहती तो आशा भी यही थी लेकिन मर्यादा की बेड़ियों में जकड़ी कुछ कह नहीं पा रही थी ।
आशा तुमने जवाब नहीं दिया , आशा ने अब जवाब ना देकर अपना फोन नंबर लिख कर भेज दिया । निलेश ने फोन लगाया तो आशा ने झट से फोन उठा लिया जैसे वो उसी का इंतजार कर रही थी और दोनों ने ढेर सारी बातें की । अब तो अक्सर दोनों फोन पर बातें करते , कभी हंसते खिलखिलाते, कभी एक-दूजे का दूं:ख - सुख बांटते , खुश रहने लगे थे दोनों । दोनों की पतझड़ जैसी ज़िन्दगी में मानों बहार आ गई , प्यार सिर्फ जिस्म का नहीं होता , सच्चा प्रेम तो ❤️ में बसता है , जो उन दोनों के दिलों में था ।अब दोनों खुशी-खुशी अपने अपने परिवार की ज़िम्मेदारी निभा रहे थे , लेकिन ❤️ में एक -दूजे के रहते थे ।
भले ही दूर थे एक दूजे से लेकिन , प्यार उनका सदा एक दूजे के साथ होने का एहसास दिलाता । जब कभी 2-4 साल बाद आशा नागपुर ननद के घर अगर जाती तो निलेश मिलने के लिए कहता , लेकिन निलेश ने कभी मिलने को मजबूर नहीं किया । आशा भी मिलने को उत्सुक होती और दोनों उसी माल में मिलते जहां पहली बार मिले थे ।
दोस्तों दोनों ने उस प्रेम को अपनी अंतिम सांस तक निभाया एक दूजे के ❤️ में रहकर , घरों में रह कर , साथ रह कर तो सभी प्यार निभाते हैं , एक दूजे से दूर दिलों में रहकर प्यार निभाना ही तो सच्चा प्रेम है ।
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