नई जिंदगी

कभी - कभी हमे अपने लिए भी ज़िंदगी के दो पल चुरा लेने चाहिए ।

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 03 Oct, 2020 | 1 min read



सुनीता के पति को गुज़रे दो साल हो गए , इकलौता बेटा नौकरी के सिलसिले में दिल्ली रहता है , सुनीता अकेली अम्बाला में है ।

 मां , क्या करें दिल्ली में फ्लैट इतने छोटे-छोटे होते हैं , उपर से किराया इतना ज्यादा , दो बैडरूम सैट है , उसका भी प़द्रह हजार किराया जाता है । एक रुम हमारा और एक बेबी को भी तो चाहिए । आपको भी कैसे ले जाएं साथ में , आप चिंता ना करें यहां मकान तो अपना है ही , पिता जी की पैंशन भी आती है , आप एक नौकर रख लिजिए , आराम से रहिए ,हम हर पंद्रह दिनों में आपको मिलने आते रहेंगे ।

 ठीक है बेटा , तुम सही कह रहे हो बच्चा भले छोटा सही उसे भी प्राईवेट रूम चाहिए ।

पहले पंद्रह दिन, फिर महीने में , और अब तो छह-छह महीने चक्कर नहीं लगता बेटे का , कहते हैं व्यस्त हैं , समय ही नहीं मिलता ।  रविवार को कभी - कभी विडियो काल कर देते हैं तो शक्ल देख कर तसल्ली हो जाती थी , धीरे- धीरे सुनीता ने अपनी पुरानी सहेलियों से मिलना - जुलना शुरु कर दिया । एक - दो किट्टी - पार्टी भी चला ली , अच्छा टाईम पास होने लगा ।

 मगर ये कोरोना ने फिर से सब वैसा माहोल बना दिया , ना कहीं जा सकते हैं , ना किसी को बुला सकते हैं , बेटे - बहु को भी ना आने का बहाना मिल गया , अकेला कैसे और कब तक जीए कोई , व्हटसअप तो चलाना आता था , किट्टी ग्रुप बने हुए थे , धीरे-धीरे और ग्रुप बनाए सब हम उम्र के लोग पुरुष एवं महिलाएं , कभी हंसी ठिठोली करते , तो कभी एक - दूजे को नई - नई रैसिपि बताते , इनमें कुछ जोड़े तो कुछ अकेले भी थे ।

एक रमेश जी थे उनकी बीवी को गुज़रे चार साल हो चुके थे , कोई औलाद नहीं, किसी का कोई सहारा नहीं , कभी खाना बनाते , कभी नहीं ।

सुनीता को अच्छा ना लगता , उन्हें रैसिपि बताती रहती और कुछ ना कुछ बनाने के लिए उन्हें कहती , वो भी मान जाते और बना कर खाते तो और भी अच्छा लगता , फिर घंटो फोन पर बातें किया करते ।

 दोनों को एक - दूजे का साथ अच्छा लगता , बातें करना अच्छा लगता , लाक डाउन तो खत्म हो गया था लेकिन फिर भी घर से बाहर नहीं निकलते थे । एक दिन रमेश जी ने हिम्मत कर के सुनीता से पूछ लिया ,

क्या आप मेरी जीवन संगिनी बनेगी ???

 ना जाने कैसा अपनापन, कैसा आग्रह था उनकी बात में सुनीता ना नहीं कह पाई ।

 दोनों के दिलों की हो गई सगाई फोन पर ही ।

सुनीता ने बेटे - बहु को फोन पर बताया कि नई जिंदगी शुरू करने जा रही है , इसलिए एक बार ज़रूर आएं , बच्चे आए तो सुनीता ने रमेश जी को बुलाया और बच्चों से मिलवाया जिसे देख बच्चे सकपका गए ।

मां ये कोई उम्र है शादी की आपकी , हमारी शर्म नहीं तो कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज़ किया होता ।

क्यों शादी सिर्फ दो जवान ही कर सकते हैं , हम लोगों के अरमान, इच्चछाएं नहीं क्या , शादी का मतलब केवल शारीरिक संबंध ही नहीं , शादी का मतलब एक - दूजे का साथ निभाना , एक - दूजे की भावनाओं की कद्र करना है । हम दिल से एक दूजे को समझते हैं , और हम एक दूजे संग खुश रहते हैं ।

हम आज से अपनी नई जिंदगी शुरू करने जा रहे हैं , तुम लोगों की इच्छा हो तो रूको अन्यथा जाना चाहो तो जाओ ।

बच्चे समझ जाते हैं कि सही मायने में शादी एक दूजे का साथ निभाना है , एक - दूजे के लिए जीना है , एक - दूजे संग जीना है , और उन दोनों को पवित्र बंधन में बांध देते हैं नई ज़िंदगी की शुरुआत करने के लिए ।


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Prem Bajaj

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