समलैंगिकता एक अहम मुद्दा है, जो कुछ लोगों की नज़र में अपराधिक प्रवृत्ति मानी जाती है, इस विषय पर सभी के अपने-अपने विचार है, कुछ की नज़र में यह रिश्ता जिसे स्त्री समलिंगी को लेस्बियन और पुरुष समलिंगी को गे भी कहा जाता है, मान्यता मिलनी चाहिए,जो किसी हद तक सही भी है और ग़लत भी। काम-वासना हर मन में होती है जो प्राकृतिक है, लेकिन कभी किसी का झुकाव विपरीत लिंग की तरफ हो जाता है, तो कभी किसी का समलिंग अर्थात अपने ही लिंग की तरफ जो किसी तरह से अपराध नहीं, मन में जब काम की तीव्र उत्पत्ति होती है तो उसे ये सुझाई नहीं देता कि सामने वाला विपरित लिंग है या सम लिंग, उसे केवल प्यार जताना या प्यार पाना या कहें कि खुद को यौन संबंध द्वारा तृप्त करना है । इसे हम ईश्वर की चूक भी कह सकते हैं, या हार्मोन की वजह से भी ऐसा हो जाता है, जैसे कोई लड़का पैदा हुआ उसका शरीर लड़के का है लेकिन अन्दर से वो लड़की की तरह है, ये हार्मोन प्रोब्लम ही होती है। जिसे वो ना तो सही उजागर कर पाते हैं और ना ही छुपा पाते हैं।
कुछ समय पहले तक लेस्बियन या बाईसेक्सुअल को अपराधिक माना जाता था, समलैंगिक विवाह को भले ही स्विकृति नहीं मिली,लेकिन 2009 में धारा 377के अन्तर्गत हाईकोर्ट द्वारा इस रिश्ते को मान्यता देने के बाद लोगों का नजरिया बदला और समलैंगिक के लिए पोर्नोग्राफी और अश्लीलता जैसे शब्द भी बदले और लोग खुलकर सामने आने लगे ।
मगर कुछ धार्मिक संगठन भारतीय संस्कृति के अनुसार इसे ग़लत करार देते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह दो हताश, असफल और नाउम्मीद लोगों द्वारा सहमति से किया व्यभिचार है और यह अप्राकृतिक है, जिसे मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। 2011में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाब नबी आज़ाद ने इसे अप्राकृतिक और गंभीर दिमागी बिमारी बताया था, उनका अर्थ ये था कि ये शारिरिक नहीं मानसिक बिमारी है जो जल्द ही भंयकर सामाजिक बिमारी बन जाएगी, उनके इस कथन पर लेस्बियन और बाईसेक्सुअल लोगों ने विरोध किया था, जिसमें बालीवुड की कई मानवाधिकार संस्थाओं ने भी साथ दिया था।
कहीं ना कहीं ये पाश्चात्य सभ्यता का ही असर है, पाश्चात्य संस्कृति में फूहड़ और भद्दे प्रयोग वहां के लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है। पाश्चात्य देशों में ऐसे हालात हो गए हैं कि व्यक्ति के पारस्परिक संबंध भी केवल भोग-विलास तक ही सीमित रह गए हैं । समलैंगिकता के संबंधों को भी वो एक अनोखे प्रयोग और फ़न के तौर पर लेते हैं। उन्हें ये सामान्य संबंधो से अधिक उत्साही लगता है, जिसका अनुसरण भारतीय एक भेड़- चाल की तरह आंखें मूंद कर करते हैं, माडर्न और अपडेट रहने के चक्कर में अपनी मौलिकता और संस्कृति का भी अपमान करते हैं । ये तथ्य भी कुछ सही या ग़लत नहीं कहा जा सकता हो सकता दो पुरुष या महिलाएं अन्य रिश्तों से हताश होकर आपस में आकर्षित होते हों,एक धारणा यह है कि बचपन में विषमलिंगी का प्रयाप्त सहयोग ना मिलना भी समलैंगिक का कारण बन सकता है, एक धारणा यह भी हो सकती है कि यदि पुरुष को नारी से और नारी को पुरूष से अगर बहुत दूर रखा जाए तो वो अपने ही लिंग में उसे ढुंढने की कोशिश करता है, पति-पत्नी की सेक्स लाइफ, समागम की अनुकूलता ना होना भी इसका कारण माना जाता है। कहीं-कहीं बेलगाम मौज -मस्ती, स्वच्छंद भोग-विलास की लालसा के रूप में जन्म लेती है, यकीनी तौर पर कुछ भी कहना कठिन है। एक समलैंगिक की मानसिकता वहीं बता सकता है ।
एक तरह से देखा जाए तो जैसे हम सैक्स को छुपाते हैं, कोई भी मानव जाति में सैक्स खुलेआम नहीं करता देखा जाता, केवल पशु जाति को ही जैसे श्वान खुलेआम सैक्स करते हैं, अगर इस रिश्ते को खुलेआम मान्यता दे दी तो आने वाले समय में मानव जाति भी श्वान की तरह ही खुलेआम सैक्स करती नजर आएंगी, अनुसंधानों से यह स्पष्ट हुआ है कि समलैंगिकता अनुवांशिक नहीं है, यह एक सीखी हुई आदत है जिसे चाहने पर छोड़ा भी जा सकता है, पुरुष-पुरूष यौनाचार में एड्स और स्त्री समलैंगिक में ह्यूमन पेपिलोमा वायरस, हर्पिस आदि बिमारियां तेज़ी से फैलती हैं, इसके अलावा समलिगिंयो में सिफलिश, हेपेटाइटिस बी, गोमोनिया, यौन- जनित अनेकों बिमारियां महामारी की तरह फैलती हैं।इसलिए इस रिश्ते को भी पर्दे में ना रखा तो आज की युवा पीढ़ी पर इसका दुष्प्रभाव ही पडेगा, यह एक प्रदूषण की तरह है जो धीरे-धीरे समाज को अपनी चपेट में ले लेगा। लेस्बियन, बाईसेक्सुअल को खुलेआम मान्यता देने से समाज में एक और भंयकर मानसिक बिमारी की बढ़ोतरी हो सकती है, युवा वर्ग पर इसका ग़लत असर पड़ सकता है । समलैंगिक को प्रताड़ित करने या मज़ाक बनाए जाने की बजाए उन्हें समझाया जाना चाहिए, कि यह कोई मानसिक बिमारी नहीं है, इससे आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है, ऐसे लोगों को सहानुभूति और इलाज की आवश्यकता होती है। दैहिक सुख की भोगवादी लालसा में समलिंगी अपने जीवन को खोखला बना रहे हैं, इस समस्या का निदान समलिंगी विवाह अनुमति में नहीं अपितु इलाज और समाधान में है।©®
प्रेम बजाज
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