व्यस्त हैं सभी आज अपने-अपने कामों में,कोई व्यस्त सुख के पलों में, कोई व्यस्त दुःख के घावों मे, कोई व्यस्त मोह- माया के बंधन में, कोई रिश्ते- नाते वाले नामों में। नहीं किसी को फुर्सत दो पल बैठ सुने कोई हाल-ए-दिल किसी का, सभी व्यस्त हैं अपने-अपने ज़ख़्म पर मरहम लगाने में, नहीं वक्त किसी के पास किसी के ज़ख़्म सहलाने का।
व्यस्तता बढ़ गई है इतनी नहीं मिलता पल का भी चैन किसी को, मशीन सा बन हर कोई चलता रहता है, देख घड़ी की सुई, उससे आगे निकलने की कोशिश हर कोई करता रहता है। व्यस्त हैं सभी अपने बच्चों में, मां-बाप को मिलने की फुर्सत नहीं, पूछे कोई उनसे ज़रा, पैदा किया जिसने तुमको, क्या उनका तुम पर कोई हक नहीं।
कोई करता गिला अपनों से, किसी को शिकायत है बेगानों से, क्यों जलते हैं परवाने, कहीं शमां पूछती परवानों से, जलना काम है उसका, वो व्यस्त अपनी दिवानगी में। क्या कसूर मेरा, परवाना शमां को समझाता है, क्यूं जलाया मुझे, मुझे तो है इश्क तुझसे, बस इतना ही बतलाता है।
भंवरा भी फूल का रस चूसने में व्यस्त था, हो कर बंद फूल में दे दी जान इतना वो उसमे मस्त था, व्यवस्ता की मस्ती में सारा जहां झूम रहा, व्यस्त के इस शब्द को हर कोई चूम रहा। ना जाने कब ये व्यवस्तता इन्सान का साथ छोड़ेगी, कब इन्सान, इन्सान से नाता जोड़ेगा, कब व्यस्त होने का ये राग खत्म होगा, कब कोई अपना, अपने के पास होगा? ना जाने कब?
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)
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