क्या आप जानते हैं, हमें सांख्यिकी माप का ज्ञान कैसे मिला?
जी हां सांख्यिकी माप के खोजी है पी० सी० महालनोबिस!
पी० सी० महालनोबिस, पूरा नाम प्रशांत चंद्र महालनोबिस भारत के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद थे। इनका जन्म 29 जून 1893 में कोलकाता में हुआ, ये मुख्यत बंगाल परिवार से थे, 28 जून 1972 में इस दुनिया से विदा हो गए।
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् नवगठित मंत्रिमंडल के सांख्यिकी सलाहकार बने, औद्योगिक उत्पादन की तीव्र बढ़ोतरी के जरिए बेरोजगारी समाप्त करने के सरकार के प्रमुख उद्देश्य को पूरा करने की योजना का खाका खींचा।
महालनोबिस, *महालनोबिस दूरी के कारण प्रसिद्ध हैं जो उनके द्वारा सुझाई गई एक सांख्यिक माप है। भारतीय सांख्यिकीय संस्थान की स्थापना भी उन्होंने की। जिसकी स्थापना 17 दिसम्बर 1931 में हुई और 28 अप्रैल 1932 को औपचारिक तौर पर पंजीकरण करा दिया गया। 1959 में इस संस्थान को राष्ट्रीय महत्व संस्थान घोषित किया गया और इसे *डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। इस दिन को मनाने का उद्देश्य समाजिक- आर्थिक नियोजन और नीति-निर्धारण में प्रो० महालनोबिस के योगदान के बारे में आज की युवा पीढ़ी को जागरूक और प्रेरित करना है।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा इनके दादा के द्वारा स्थापित किए गए ब्रह्मै ब्वायज़ स्कूल में हुई। उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा इसी स्कूल से की । प्रेसिडेंसी कॉलेज से भौतिकी विषय में आनर्स करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए ये लंदन गए। वहां कैंब्रिज विश्वविद्यालय में इन्होंने भौतिकी और गणित में डिग्री हासिल की वहां ये एकमात्र भारतीय थे जिन्होंने भौतिक में पहला स्थान प्राप्त किया। कैंब्रिज छोड़ने से पहले प्रो० महालनोबिस ने अपने शिक्षक, डब्ल्यू एच मेकाले के कहने पर बायोमैट्रिका पुस्तक पढ़ी, यह एक सांख्यिकी जर्नल था, जिसे पढ़ना उन्हें इतना अच्छा लगा कि उसका एक सैट ये खरीद कर भारत ले आए, बायोमैट्रिका पढ़ने से उन्हें मौसमविज्ञान और मानव-शास्त्र जैसे विषयों में सांख्यिकी का ज्ञान हुआ और भारत लौटते ही इसी पर काम करना शुरू किया, सांख्यिकी की और इनका रूझान तब से होने लगा। तब उन्होंने आचार्य ब्राजेन्द्रनाथ सील के निर्देशन में सांख्यिकी पर काम करना शुरू कर दिया। उनका सबसे पहला काम था परीक्षा के परिणाम का सांख्यिकी माध्यम से विष्लेषण, इसमें उन्हें काफी सफलता मिली, इसके बाद उनकी मुलाकात अन्नाडेल से हुई जो उस वक्त जुलोजीकल एंड एंथ्रोपोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक थे। उन्होंने इन्हें एंग्लो-इंडियन के बारे में एकत्र आंकड़ों का विश्लेषण करने को कहा, इस विष्लेषण का जो परिणाम आया वह भारत में पहला सांख्यिकी का शोध पत्र माना गया।
प्रो० महालनोबिस की रूचि गणित के अलावा साहित्य में भी थी, गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के साथ उनके अच्छे सम्बन्ध थे। टैगोर के साथ सम्बन्ध प्रगाढ़ होने से वे 1910 में पहली बार *शांति निकेतन पहुंचे, जब टैगोर ने *विश्व भारती की स्थापना की तो प्रो० महालनोविस को संस्थान का सचिव नियुक्त किया। इन्होंने गुरूदेव के साथ कई देशों की यात्रा की और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज लिखे, इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इनकी मदद लेनी शुरू की, और उन्होंने कृषि एवं बाढ़ नियंत्रण के क्षेत्र में कई अभिनव प्रयोग किए । उनके द्वारा दिए गए बाढ़ नियंत्रण के उपायों पर अमल करते हुए सरकार को अच्छी सफलता मिली।
27 फरवरी 1923 में निर्मला कुमारी से इनका विवाह निर्मला कुमारी के पिता की इच्छा के विरुद्ध हुआ, जिसमें महालनोबिस के मामा ने लड़की के पिता की भूमिका निभाई।
उन्होंने अपने जीवन में अनेकों सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त किए।
1944 में वैलडन मैडल पुरस्कार ।
1945 में रायल सोसायटी ने उन्हें अपना फैल्लो नियुक्त किया।
1950 में इंडियन साइंस कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।
अमेरिका के एकोनोमैट्रिक सोसायटी के फैल्लो नियुक्त किए गए।
1952 में पाकिस्तान सांख्यिकी संस्थान के फैल्लो नियुक्त किए गए।
1954 में रायल स्टैटिस्टिकल सोसायटी के मानिद चुने गए।
1957 में देवी प्रसाद सर्वाधिकार स्वर्ण पदक दिया गया, अंतराष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान का ऑनररी अध्यक्ष बनाया गया।
1959 में किंग्स कालेज का मानद, 1968 में पद्म विभूषण एवं श्री निवास रामानुजम स्वर्ण पदक दिया गया ।
मगर उन्होंने कभी कोई पद अधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया क्योंकि उन्हें विज्ञान में ब्यूरोक्रेसी की दखलअंदाजी पसंद नहीं थी, वे भारतीय सांख्यिकी संस्थान को सदा स्वतन्त्र संस्था के रूप में देखना चाहते थे।
हर वर्ष #29 जून को उनके जन्मदिन पर भारतीय सरकार *सांख्यिकी दिवस मनाती हैं।
प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)©®
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