अनचाहे बंधन

अनचाहे बंधन

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prem bajaj
prem bajaj 25 Mar, 2021 | 1 min read


 किस्मत ऐसे दो लोगों को क्यूं मिलाती है जब उपर वाले ने उनको एक कर सके ऐसा कोई रास्ता ही निर्माण नहीं किया होता।

ना जाने कैसे रह पाते हैं वो, जैसे कंठ में विष हो, जो ना निगला जाए ना उगला जाए । 

ऐसा ही कुछ आशा और देबू के साथ हुआ ।


"पापा क्यों की आपने मेरी शादी वहां, क्या जल्दी थी आपको मुझे घर से निकालने की, कितना कहा कि एक - दो साल दे दो मुझे, मैं आगे पढ़ना चाहती हूं , बाद में कर देना शादी मेरी"।

पापा, "बाद में क्या हो जाता, तब कुछ बदल जाता क्या, इश्वर ने जहां तेरा नसीब लिखा है, होना तो वहीं था"!

आशा को याद आ गए वो दिन, बी. ए. ही तो किया था आगे पढ़ना चाहती थी , लेकिन पापा नहीं माने, शादी के लिए जल्दी करने लगे और आनन- फानन में चार- पांच लड़के देखकर ही थक गए और एक जगह हां कर दी, लड़के वाले भी तैयार थे और शादी कर दी गई, आशा ने कहा भी, कि एक बार हम दोनों को मिलना चाहिए, बात करनी चाहिए, लेकिन कोई नहीं माना, आखिर वही हुआ ।

दोनों के विचार नहीं मिलते, सोच नहीं मिलती, पसंद नहीं मिलती, लड़का कम पढ़ा था , छोटी सोच, हर पल निगाहों में शक, कहां तक सहे कोई, लेकिन और कोई रास्ता भी तो नहीं।

आशा उस दिन को याद करके कोसती है जब ........

"आशा अरे ओ आशा, क्या कर रही है"

"कुछ नहीं मम्मा, मैं ये प्रोस्पैक्टस देख रही थी, कि एडमिशन की डेट कौन सी है"!

"बेटा कितनी बार कहा है, तेरे पापा नहीं चाहते तु आगे पढ़े, बी. ए. तो कर लिया,बस बहुत है, अब जाओ अपने घर"

"ओफो कितनी बार कहा आपसे पापा से कहो ना कि एक साल का तो कोर्स है, करने दें, उसके बाद जहां ब्याहना है, ब्याह देना"।

सोचा था एक साल झूठ बोल कर एक बार एडमिशन हो जाए तो दो साल तो फिर पार कर ही लेंगे।

नहीं मालूम कि किस्मत में तो कुछ और ही था ।

शादी के बाद रोज़ का यही हाल .......

"किसके ख़यालो में कोई हो, कहां खो जाती हो , कभी रोटी जल गई, कभी सब्जी में नमक ज्यादा, तो कभी दूध उबल गया, आखिर कौन से यार की याद सताती है तुम्हें, काम में तो ध्यान होता ही नहीं"

"देबु आपसे कितनी बार कहा मैंने, ऐसा कुछ भी नहीं जो आप कह रहे हो, मेरी ज़िन्दगी में आपके सिवाय ना कोई था, ना होगा"

"हुंउउउउउउऊ कालिज में कोई जाए और इश्क ना हो ऐसा कैसे हो सकता है"

"कालिज इश्क करने के लिए तो नहीं, और सभी एक जैसे भी नहीं होते, जिन्हें इश्क करना है, बिना कालिज गए भी करते हैं"। 

इस तरह रोज़ की खिट- पिट में तीन साल गुज़र गए। आज आशा को सुबह से चक्कर आ रहे थे, देबू आफिस गए हुए थे, किससे कहती, खुद ही चली गई डाक्टर के पास, चेकअप कराया तो पता चला एक महीने के गर्भ से है, मन में खुशी की लहर दौड़ गई, कि शायद अब देबू का व्यवहार उसके प्रति अच्छा हो जाए। घर आकर खुशी से देबू का इंतजार करने लगी, रात को जैसे ही बिस्तर पर गई तो देबू के गले में बाहें डाल कर चूम लिया उसे, इस पर देबू ने झटके से उसे अलग किया और बोला, " ये क्या बचपना है, ऐसी कौन सी लाटरी लगी है जो इतनी खुश हो"

आशा," लाटरी से भी बढ़कर खुशी है" अब आशा से रहा नहीं गया और बोल ही दिया, " मैं मां बनने वाली हूं, और आप पापा"

" तुम मां बनने वाली हो ये तो ठीक है, मगर पापा मैं ही हूं या तुम्हारा कोई यार"

सुन कर आग सी लग गई तन-बदन में, नहीं सह पाई इतनी ज़िल्लत, एक झटके से उठी और भागी छत की ओर बस इतना ही कहा इश्वर से," जब हम दोनों को एक - दूसरे के लिए बनाया ही नहीं था, तो मिलाया क्यूं, क्यों बांधे ये अनचाहे बंधन"??

थोड़ी देर में एम्बुलेंस आ जाती है, लेकिन उसमें अब कुछ भी नहीं रहा, डाक्टर ना में सिर हिलाकर एम्बुलेंस खाली वापिस ले जाते हैं।



मौलिक एवं स्वरचित

प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)

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