" औरत " एक औरत के कितने रूप होते हैं, बेटी, बहन, बहु, सास या माँ , सब रिश्ते बड़ी शिद्दत से निभाती है औरत।
सब को ये रिश्ते तो चाहिए , लेकिन बस बेटी ना पैदा हो किसी के घर , अगर हमें ये रिश्ते चाहिए तो बेटी से परहेज़ क्यो है हमें।
हमारे घर बेटी ना पैदा हो , चाहे पड़ोसी के घर में हो जाए , जिसे हम अपने बेटे के लिए ब्याह कर लाते है , वो भी तो बेटी ही है किसी की ।
औरत होना आसान नही होता।
*हर तरह की तकलीफ सहती है औरत ,
मर-मर कर भी ज़िन्दा रहती है औरत*
हज़ार बार मरती है औरत ,हज़ार ख़्वाब दिल मे दफ़न करती है औरत, इश्वर ने जब बनाया होगा औरत को, और लिखा होगा जब नसीब उसका तो , वो भी शायद रोया होगा बहुत।
सच ही तो है , जब भी किसी के घर मे बेटी पैदा होती है तो , सब यही कहेंगे कि लक्ष्मी आई है, लेकिन फिर भी मुँह लटका होगा।
मानते हैं कि आज जमाने की सोच कुछ बदल गई है, लेकिन अभी भी लड़की को वो मान-सम्मान नहीं मिल पाता , जब एक लड़की ही परिवार चलाती है ,वँश आगे बढ़ाती है।
और फिर देखिए जहाँ किसी की दूसरी बेटी अगर पैदा हो गई तो , वो शायद खुद तो एक बार सब्र करले , दूनियाँ वाले आग मे घी का काम करते हैं, अरे ओफ़ो, बेचारे की दूसरी भी बेटी हो गई , कमर टूट गई उसकी तो।
क्यों बेटे क्या कमर पे अँबुजा सिमेंट का काम करते है क्या?
एक और, कि बेटा होता तो फैमिली कम्पलीट हो जाती , क्या बेटियो से फ़ैमिली कम्पलीट नही गिनी जाती ?? आज के समय मे बहुत कम ही बेटे है ,जो माता-पिता के साथ रहते हैं , कुछ नौकरी के सिलसिले में तो कुछ माता-पिता से विचार ना मिलने की वजह से । जब बेटों के होते हुए भी अकेले ही रहना है तो क्या बेटी और क्या बेटा ।
और हर बँदिश भी बेटियों पर ही लगाई जाती है , बाहर अकेले जाना हो या कहीं नौकरी पे जाना हो ,या किसी भी तरह से ,बेटे को कोई रोक-टोक नहीं, बेटी को छुपा कर ऐसे रखा जाता है जैसे सोने की गिन्नी , बेटियों को छुपाने या उनके लिए मन में डर रखने के बजाए बेटों को अच्छे संस्कार दिये जाने चाहिए , बेटो को सिखाया जाए कि एक औरत पूजनीय है , वह भी उतनी ही इज़्ज़त की हकदार है जितने कि बेटे ।
आज की बेटियो ने बहुत कुछ कर दिखाया है, बहुत नाम कमाया है , लेकिन अभी भी बेटी को लेकर अपनी सही जगह नही मिल पा रही ।
आज के समय मे जो रेप की घटनाऐं घट रही है ,रेप लड़के करते है या कि लड़कियाँ, नाक लड़के कटवाते है या लड़कियाँ , माना कुछ लड़कियाँ गल्त हो सकती है ,लेकिन किसी एक की गल्ती के लिए ,दूसरी अजन्मी बेटियों को क्यो सज़ा दी जाए ।
दरअसल सबसे पहले औरत को ही बदलना होगा , क्योंकि औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है , एक औरत ही औरत को सबसे पहले दबाती है , उसे उपर उठने से रोकती है , जहाँ सास का फर्ज है कि बहु को बेटी समझे , उसे उसका उचित सम्मान दे, वही बहु को भी चाहिए कि वो भी ससुराल को अपनापन दे ,अपना परिवार समझे, उनके साथ मिलकर चले गाड़ी का अगर एक पहिया निकल जाए तो गाड़ी नहीं चलेगी , इसी तरह परिवार के सभी सदस्य अगर अपनी ही हाँकते है तो तालमेल नहीं बैठता।
समाज मे क्राँति लाने के लिए अपनेआप से शुरूआत करनी चाहिए। हमें अपनी बहू-बेटियों में फर्क नहीं करना है, औरत होने के नाते औरत का मनोबल बढ़ाना है।
हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा ।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी (यमुनानगर)
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