मेरी मां इश्वर का रूप है, गुरू है , सहेली है, प्रेरणा है मेरी। क्या संज्ञा दूं मां की, ऐसा तो कोई शब्द ही नहीं बना जो मां की व्याख्या कर सके।
कहते हैं जब ईश्वर ने संसार रचा तो उस संसार की देखभाल,प्यार- दूलार के लिए स्वयं धरती पर ना सकने की सूरत में उसने अपनी कमी पूरी करने हेतू मां को जन्म दिया।
मेरी मां मेरे लिए पूरा संसार है, मां के बिना तो ये तन निष्प्राण है। हर छोटी-बड़ी, अच्छी -बुरी बात मां सिखती है, पहला शब्द बोलना भी तो बच्चा मां सीखता है, मां की आंखों से वो संसार देखता है। पराए दुःख में दुखी होना क्या है मैंने मां से जाना।
बात तब की है जब मैं स्कूल पड़ती थी, हमारी बाई का बेटा बहुत बीमार था, मां उसे डाक्टर पास ले गई और दवाई दिलवाई, उसके बाद वो खुद से ही दवाई ला रही थी , दरअसल उसे टाईफाइड हुआ था, काफी दिन लग गए ठीक होने में, जब वो ठीक हो गया तो कुछ दिनों बाद मां ने बाई से पूछा कि अब बेटा स्कूल जाने लगा है तो वो बोली, "नहीं मालकिन, कमजोरी इतनी आ गई कि उठना भी मुश्किल है, डाक्टर कहते हैं अच्छी खुराक दो, कहां से लाएं, पहले इलाज पर इतना खर्चा हो गया, शुक्र है थोड़ी आपने मदद कर दी, वरना इलाज भी मुश्किल था"
मां ने उसी समय एक गिलास दूध का और एक सेब उसे देकर कहा," कल से रोज़ एक गिलास दूध और फल मेरे से ले जाना अपने बेटे के लिए"
मैंने मां से कहा, "मां हम क्यों दे रोज़ दूध और फल देंगे, उसके पापा लाएंगे ना"
मां बोली," बेटा वो ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि इतना खर्च वहन कर सकें, ज़रूरतमंद की मदद करना ईश्वर की पूजा समान होता है, समझो हम ईश्वर की पूजा कर रहे हैं"
इस तरह एक सप्ताह बाद वो अपने बेटे को लेकर आई, जो स्वस्थ लग रहा था, और दोनों मां-बेटा बहुत खुश थे, कि मां की मदद से वो अब पूर्णतया स्वस्थ है।
मां की बात हर समय मेरे ज़हन में गूंजती है, और मैं अक्सर ज़रूरतमंदो की मदद करती हूं, मुझे भी ऐसा लगता है जैसे मैंने ईश्वर की पूजा की है।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)
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